वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये होने वाली रजिस्ट्री में पहले खामियों पर ध्यान देना होगा

भोपाल

प्रापर्टी की रजिस्ट्री के लिए अगले साल से शुरू होने वाले संपदा 2.0 साफ्टवेयर पर पंजीयन विभाग के अफसरों ने खामियां बताते हुए इसे दुरुस्त करने सरकार का ध्यान आकृष्ट किया है। इन अफसरों का कहना है कि अभी जो व्यवस्था प्रस्तावित है, उसमें वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये होने वाली रजिस्ट्री में विक्रेता पर दबाव बनाने के लिए अवैध तरीकों का इस्तेमाल हो सकता है। कहीं गन पाइंट पर तो कहीं किसी दूसरे अन्य तरीके से जमीन के खरीददार बेचने वाले पर दबाव बना सकते हैं। इसलिए सरकार को पहले इन तरह की खामियों पर ध्यान देना होगा।

पंजीयन और मुद्रांक विभाग अप्रेल 2023 से करीब एक हजार करोड़ का संपदा 2.0 साफ्टवेयर पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू करने वाला है। इसके बाद धीरे-धीरे यह व्यवस्था पूरे प्रदेश में लागू की जाने वाली है। इस साफ्टवेयर की खूबियों के साथ इसका विरोध भी अफसरों की टीम कर रही है। नई लागू होने वाली व्यवस्था में जो प्रस्ताव अब तक सामने आए हैं, उसके अनुसार प्रदेश में प्रापर्टी के दस्तावेज इलेक्ट्रानिक तौर पर पंजीबद्ध करने और डिजिटल लॉकर में रखने की तैयारी है। इसके साथ ही आधार नम्बर के जरिये इस व्यवस्था में लोगों को सब रजिस्ट्रार के दफ्तर गए बगैर रजिस्ट्री करने की सुविधा भी मिल सकती है। इसी को लेकर पिछले दिनों विभाग के अफसरों से जब इस मसले पर सुझाव मांगे गए तो रजिस्ट्री में आधुनिकीकरण का समर्थन करने के साथ पंजीयन अफसरों ने यह आशंका भी जताई कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से फायदे हैं तो इसके नुकसान भी हैं। प्रापर्टी खरीदने वाली पार्टी गूगल मीट पर या वीडियो कांफ्रेंसिंग के अन्य फार्मेट पर विक्रेता पर दबाव बना सकती है। सब रजिस्ट्रार दफ्तर आने पर इस तरह की संभावना कम होती है।

सर्विस प्रोवाइडर कर सकते हैं गड़बड़
सरकार को दिए सुझाव में पंजीयन अफसरों ने यह भी कहा है कि इसमें सर्विस प्रोवाइडर को कर्मचारी रखने के अधिकार दिए जाने की बात कही गई है। ऐसे में जिसे लाइसेंस मिला है वह उसका दुरुपयोग भी कर सकता है। सर्विस प्रोवाइडर के कर्मचारी की गलती पर सजा दिए जाने की व्यवस्था तय नहीं है। ऐसे कर्मचारियों को वेतन, मानदेय कौन देगा, यह भी साफ नहीं है। इसलिए इसे भी स्पष्ट किया जाना चाहिए अन्यथा इससे करप्शन थमने की बजाय बढेÞगा।

हर प्रापर्टी की बन जाएगी आईडी
दूसरी ओर संपदा 2.0 लागू होने का सबसे अधिक फायदा यह बताया जा रहा है कि हर भूमि, भवन की आईडी बन जाएगी। इस आईडी के बनने के बाद आधार से लिंक होने पर जब भी जमीन की बिक्री की स्थिति बनेगी तो विक्रेता का अंगूठा और रेटिना मैच न करने पर उस प्रापर्टी की रजिस्ट्री नहीं हो सकेगी। अब व्यक्ति की पहचना से प्रापर्टी की पहचान हो सकेगी। इसमें नगर निगम, नगर व ग्राम निवेश, राजस्व विभाग तथा विकास प्राधिकरणों की प्रापर्टी भी स्पष्ट हो सकेगी।

यह भी दिक्कत बताई
पंजीयन अफसरों के अनुसार आमतौर पर ग्रामीण इलाकों के प्रापर्टी मालिकों के नाम दस्तावेजों में किसी न किसी रूप में त्रुटिपूर्ण होते हैं। ऐसे में गवाहों के बयान के आधार पर सब रजिस्ट्रार स्पेलिंग त्रुटि या पारंपरिक नाम की त्रुटि मानते हुए इसे इग्नोर भी कर देते हैं लेकिन साफ्टवेयर में प्रस्तावित व्यवस्था लागू होने के बाद नामों को लेकर उसी तरह की दिक्कत सामने आ सकती है जिस तरह पासपोर्ट में नाम के एक भी अक्षर के गलत लिख जाने से होती है। इस मामले में भी विचार करना समाधान करना होगा।

व्यवस्था में पारदर्शिता के लिए जुटा विभाग
उधर पंजीयन और मुद्रांक विभाग रजिस्ट्री कराने की व्यवस्था में लगातार पारदर्शी व्यवस्था बनाने में जुटा है। विभाग द्वारा भूमाफिया द्वारा सरकारी जमीन की रजिस्ट्री कराने से रोकने के लिए संपदा के साफ्टवेयर को राजस्व विभाग से लिंक कराने का काम किया गया है। इसके बाद खसरा नम्बर डालते ही ऐसे मामलों में गड़बड़ सामने आ जाती है। इसके साथ ही संपदा साफ्टवेयर के माध्यम से रजिस्ट्री होते ही नामांतरण की व्यवस्था प्रभावी हो चुकी है। अलग से प्रापर्टी खरीददार को तहसीलदार के यहां नामांतरण के लिए आवेदन नहीं करना पड़ रहा है।

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