‘दुनिया AI पर आई, आप वहीं खड़े रहे कटोरा लिए’, पाक मीडिया में क्यों हो रही PM शरीफ की खिंचाई?

नई दिल्ली
 पड़ोसी देश पाकिस्तान में पिछले साल सत्ता परिवर्तन हुआ था। अप्रैल 2022 में इमरान खान की जगह शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बने लेकिन पिछले 10 महीनों में शरीफ देश की आर्थिक स्थिति सुधार पाने में नाकाम रहे हैं। इस वजह से उनकी देश और दुनिया में आलोचना हो रही है। भारी नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को आर्थिक पटरी पर लाने के लिए पीएम शरीफ का पूरा फोकस अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मिलने वाले 1.7 अरब के लोन पर ही टिका हुआ है। इसके लिए शरीफ सरकार ने आईएमएफ की हर शर्त मान ली है और इस वैश्विक संस्था के सामने घुटने टेकते हुए पाकिस्तानियों पर ही टैक्स का बोझ लाद दिया है। पिछले दिनों वित्त मंत्री इशाक डार ने 170 अरब रुपये जुटाने के मकसद से टैक्स बढ़ोत्तरी वाला मिनी बजट संसद में पेश किया है।

पाकिस्तानी मीडिया में इसकी घोर आलोचना हो रही है और कहा जा रहा है कि सरकार के कदम से पहले से ही आसमान छूती महंगाई और बढ़ गई है। साथ ही कई लोग बेरोजगार हो गए हैं। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून में एक आलेख में शोधकर्ता और पत्रकार बिलाल लखानी ने लिखा है कि जब पूरी दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की तरफ बढ़ रही है, तब भी पाकिस्तान IMF के सामने झोली फैलाए खड़ा है।

लखानी ने लिखा है, “पिछले 10 महीनों से पाकिस्तानी प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ की देश की अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के लिए आलोचना हो रही है। देश के आर्थिक विकास में तेज गिरावट देखी गई है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2009 के बाद सबसे कम हो गया है। आर्थिक विकास में गिरावट काफी हद तक अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक कमजोरियों को दूर करने में सरकार की विफलता का परिणाम है। आसमान छूती महंगाई, बड़े पैमाने पर चालू खाता घाटा और गिरती करंसी वैल्यू ने लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को और कमजोर बना दिया है।"

लखानी के मुताबिक, शहबाज़ के पदभार ग्रहण करने के बाद से ही पाकिस्तान के आर्थिक पतन के प्राथमिक कारणों में वे आर्थिक नीतियां भी रही हैं, जो सिर्फ मितव्ययिता के उपायों पर केंद्रित रही आर्थिक विकास के उपायों पर पर्याप्त फोकस नहीं कर सकी हैं। शरीफ सरकार ने लगातार आमजन पर टैक्स का बोझ लादने, सब्सिडी में कटौती करने और खर्च को कम करने सहित कई मितव्ययिता उपायों को लागू किया है। इन नीतियों के कारण सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि में कमी आई है और बेरोजगारी में इजाफा हुआ है। इसके अतिरिक्त,सरकार बुनियादी ढाँचे और अन्य प्रमुख क्षेत्रों में निवेश करने में विफल रही है, जिससे आर्थिक गतिरोध और बढ़ गया है। सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे को हल करने में भी विफल रही है जो पाकिस्तान में एक बड़ी समस्या है। भ्रष्टाचार देश में बड़े पैमाने पर है जो सार्वजनिक ऋण में वृद्धि सहित विभिन्न आर्थिक मुद्दों से जुड़ा हुआ है।

उन्होंने लिखा है, दुनिया AI जैसे अगली पीढ़ी की तकनीकी नवाचारों की ओर बढ़ रही है,जबकि पाकिस्तान उसी पुराने समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए संघर्ष कर रहा है जो करीब दो दर्जन से अधिक बार IMF के साथपहले भी कर चुका है। लखानी ने लिखा है,"सच्चाई यह है कि हमें यह समझने के लिए AI या अर्थशास्त्र में पीएचडी की जरूरत नहीं है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कितनी खराब है और अर्थव्यवस्था किस दिशा में जा रही है? इसका सुराग पाने के लिए हमें सिर्फ पीएम शहबाज शरीफ के अपने भाई और बेटे को देख सकते हैं,जो इस गंदगी को ठीक करने या इसके प्रभाव में आने से बचने के लिए लंदन से लाहौर वापस आने से भी इनकार कर रहे हैं।

 

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