आर्थिक तरक्की थमते ही चीन के बदले सुर, निजी कंपनियों के लिए जारी किया पॉलिसी डॉक्यूमेंट

बीजिंग

अप्रैल-जून तिमाही में चीन की अर्थव्यवस्था की विकास दर उम्मीद के मुकाबले काफी कम रही है. जून में चीन का एक्सपोर्ट लगातार दूसरे महीने गिरने से वहां पर चिंता बढ़ गई है. चीन के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक देश में करीब 20% युवा बेरोजगार हैं. वहीं इस मामले में चीन पर डेटा छिपाने का भी आरोप लगा है. वहीं की एक प्रोफेसर ने दावा किया है कि देश में मार्च में ही युवाओं की बेरोजगारी दर 50% के करीब पहुंच गई थी, चीन के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मार्च में देश में युवाओं की बेरोजगारी दर 19.7% थी.

झांग ने एक फाइनेंशियल मैगजीन Caixin में लिखे ऑनलाइन आर्टिकल में कहा कि अगर घर में पड़े या अपने माता-पिता पर निर्भर 1.6 करोड़ नॉन-स्टूडेंट्स को भी मिला दिया जाए तो ये 46.5% बैठती है. ऐसे में चीन ने अब इकॉनमी को पटरी पर लाने के लिए निजी कंपनियों को भरपूर मदद देने का फैसला किया है.

निजी कंपनियों को चीन की सरकार देगी मदद

चीन के इस रवैये में एकाएक परिवर्तन नहीं आया है. दरअसल, खपत में कमी आने और विदेशी निवेश के कमजोर पड़ने से चीन को अपने रूख में बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. हाल ही में अमेरिका के सांसदों ने भी आरोप लगाया था कि चीन में अमेरिकी कंपनियों को परेशान किया जा रहा है. उनका कहना था कि चीन में प्राइवेट कंपनी नाम की कोई चीज नहीं होती है. 3 साल तक चीन की सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को बहुत परेशान किया है.

इससे अलीबाबा जैसी कंपनियों का मार्केट कैप बुरी तरह लुढ़क गया. लेकिन बदले हालातों में चीन की सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को लुभाने के लिए तमाम जतन करने शुरू कर दिए हैं. चीन की हुकूमत ने कभी जिन कंपनियों पर जुल्म किया था, अब उन्हीं को अलग अलग तरीकों से मनाने में चीन की सरकार जुट गई है. यही वजह है कि चीन की सरकार ने इन कंपनियों को अपना पूरा समर्थन देने का वादा किया है.

 

निजी कंपनियों को मदद के लिए जारी किया पॉलिसी डॉक्यूमेंट 

चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी और स्टेट काउंसिल (कैबिनेट) ने सरकारी मीडिया पर एक पॉलिसी डॉक्यूमेंट जारी किया है. इसमें विस्तार से ये जानकारी दी गई है कि निजी कंपनियों को बड़ा, बेहतर और मजबूत बनाने के लिए क्या-क्या कदम चीन की सरकार उठाने जा रही है. इसमें कहा गया है कि प्राइवेट इकॉनमी चाइनीज-स्टाइल मॉर्डनाइजेशन को प्रमोट करने की नई शक्ति है. ये उच्च स्तर के विकास की बेहद जरुरी बुनियाद है और चीन को सोशलिस्ट आधुनिक शक्ति की एक योजना का खास हिस्सा है. इसमें कहा गया है कि देश में स्वस्थ कारोबारी प्रतिद्वंदिता के लिए एक सिस्टम तैयार किया जाएगा. इसके अलावा प्राइवेट कंपनियों की ग्रोथ के रास्ते में आने वाले ब्रेकर्स को हटाया जाएगा और एंटी-मोनोपॉली कानूनों को मजबूती से लागू किया जाएगा. 

 

चीन ने 3 साल तक निजी कंपनियों को सताया
निजी कंपनियों की मदद के लिए जारी किया गया ये पॉलिसी नोट चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों के एकदम विपरीत है. जिनपिंग की नीतियां पिछले कई वर्षों से प्राइवेट कंपनियों पर लगाम लगाने के मकसद से लागू की जा रही थीं. जिनपिंग ने प्राइवेट कंपनियों को बेहद ताकतवर बताते हुए इन पर लगाम कसने की जरूरत बताई थी. 2020 में उन्होंने अलीबाबा समेत कई कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी.

रेगुलेटरी क्रैकडाउन से टेक्नोलॉजी से लेकर रियल एस्टेट तक कई सेक्टर्स पर चीन की सरकार ने कड़ी कार्रवाई की थी. रही सही कसर कोविड-19 की रोकथाम के लिए लगाए गए सख्त प्रतिबंधों ने पूरी कर दी थी. इसका परिणाम ये हुआ कि इन कंपनियों ने नई हायरिंग और नया निवेश रोक दिया था. इससे चीन में बेरोजगारी बढ़ते बढ़ते जून में करीब 20% पर पहुंच गई. जून में एक्सपोर्ट भी मई के बाद लगातार दूसरे महीने लुढ़क गया. ऐसे में अब चीन की सरकार किसी भी तरह अर्थव्यवस्था की गति को बढ़ाने के लिए निजी कंपनियों को लुभाने की कोशिशों में लग गई है. 

 

निजी कंपनियों के लिए सहूलियतों की भरमार
चीन में अब बाजार आधारित प्रथम श्रेणी का कारोबारी माहौल बनाया जाएगा. इसके जरिए निजी कंपनियों के प्रॉपर्टी राइट्स को सुरक्षित किया जाएगा. इसके साथ ही चीन में एक 'ट्रैफिक लाइट' सिस्टम बनाया जाएगा जिससे उन क्षेत्रों में निवेश से जुड़ी समस्याओं को दूर किया जाएगा जहां पर निवेशक इंवेस्ट करने के लिए तैयार होंगे. चीन अब निजी कंपनियों को टेक्नोलॉजी इनोवेशन बॉन्ड्स भी जारी करने के लिए प्रोत्साहित करेगा और योग्य व्यवसायों को लिस्ट होने और रीफाइनेंस में भी मदद की जाएगी.

इकॉनमी को बूस्ट करने के लिए अथॉरिटीज ने टेक और प्रॉपर्टी सेक्टर्स की कुछ ऐसी नीतियों को भी हटाना शुरु कर दिया है जो कारोबार की राह में अड़चन साबित हो रही थीं. चीन के नीति निर्माताओं ने टेक से लेकर मॉडर्न लॉजिस्टिक्स सेक्टर तक की कंपनियों का भरोसा बढ़ाने के लिए उनके साथ बैठकें शुरु कर दी हैं. 

 

चीन में घटा निजी निवेश
इस साल के पहले 6 महीनों में प्राइवेट फिक्स्ड एसेट इंवेस्टमेंट 0.2% सिकुड़ गया था. वहीं सरकारी निवेश में इस दौरान 8.1% की बढ़ोतरी हुई थी. इससे साफ पता चलता है कि चीन के निजी सेक्टर का भरोसा किस हद तक डगमगा गया है. जिन नई सहूलियतों को अब चीनी सरकार ने देने का फैसला किया है, उनमें प्लेटफॉर्म कंपनियां भी शामिल हैं जो नौकरियों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में मजूबत रोल निभा सकती हैं. इसके अलावा निजी कंपनियों को पावर जेनरेशन, स्टोरेज और इंडस्ट्रियल इंटरनेट जैसे क्षेत्रों में भी निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.

इसके साथ ही निजी क्षेत्र को R&D में निवेश करने के लिए भी आकर्षित किया जा रहा है. नई तरह के इंफ्रास्ट्रक्टर में निवेश और निर्माण के लिए भी प्राइवेट कंपनियों को लुभाने की भरपूर कोशिश की जा रही है. नई गाइडलाइंस में निजी फर्म्स को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी तरह की बयानबाजी और प्रैक्टिस पर भी नजर रखी जाएगी और इनकी चिंताओं का समयबद्ध तरीके से निस्तारण किया जाएगा. 

चीन की नीतियों पर शक बरकरार!
अब भले ही चीन ने निजी कंपनियों को राहत देने का एलान कर दिया हो. लेकिन चीन में काम कर रही विदेशी कंपनियों के लिए वहां का नया जासूसी विरोधी कानून मुसीबत बन गया है. इस कानून के लागू होने से विदेशी कंपनियों की मुसीबतें बढ़ गई हैं. वैसे तो इस बारे में मूल कानून 2014 में आया था. लेकिन अब पिछले महीने आए नए कानून के मुताबिक जासूसी की आशंका से जुड़े किसी भी डॉक्यूमेंट, डेटा, मटीरियल्स और आर्टिकल की जांच हो सकती है.

साथ ही इसके जरिए सुरक्षा एजेंसियों को किसी भी संदिग्ध के सामान, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज और प्रॉपर्टी की जांच करने का अधिकार होगा. विदेशी कंपनियां इस कानून पर खासी आपत्ति जता चुकी हैं. उनका कहना है कि जल्दबाजी में बनाए गए इस कानून से कारोबारी माहौल खराब होगा. 

 

चीन में विदेशी कंपनियों के संगठनों ने जताया एतराज
निक्केई एशिया के मुताबिक चीन में विदेशी कंपनियों के दो सबसे बड़े संगठनों ने इस कानून को जल्दबाजी में बनाया गया बताया था. इससे विदेशी कंपनियों का चीन पर भरोसा और डगमगाने की आशंका भी जताई गई थी. अमेरिका और चीन के बीच बढ़ रही टेंशन की वजह से पहले ही कंपनियां मुश्किल में हैं. यूरोपियन यूनियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के मुताबिक कंपनियों को खुद पता होता है कि उन्हें किस नियम का पालन करना है.

उन्हें स्टेट सीक्रेट की जानकारी है और क्या जानकारी नहीं रखनी इसका भी कंपनियों को अच्छे से पता है. ऐसे में इस कानून से कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. पहले ही उन्हें डेटा सिक्योरिटी लॉ और नेशनल सिक्योरिटी लॉ जैसे कानूनों का सामना करना पड़ रहा है. 

 

चीन की अर्थव्यवस्था की मुश्किल बढ़ाएगा कानून!
अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स इन इंडिया के मुताबिक अमेरिका की कंपनियां कानूनों का पालन करना चाहती हैं. लेकिन कारोबार की सामान्य बिजनेस गतिविधियां भी अगर कानून के दायरे में आएगी तो इससे मुश्किल होगी. इंटरनेशनल लॉ फर्म Morgan Lewis की रिपोर्ट के मुताबिक संदिग्धों की पहचान करने की शर्तें साफ नहीं हैं और इससे कंपनियों के लिए दुविधा के हालात बनेंगे. वहीं इससे चीन की इकॉनमी को भी कोविड महामारी के असर से बाहर आने की कोशिशों को झटका लगेगा.

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