लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी का भाषण साबित होगा 2019 का चुनावी बिगुल?

नई दिल्ली 
लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह पांचवां और वर्तमान मोदी सरकार का यह अंतिम संबोधन है. देश चार साल से ज़्यादा समयावधि का उनका कार्यकाल देख चुका है और इससे पहले चार बार बतौर प्रधानमंत्री वो भारत की जनता को लाल किले के प्राचीर से संबोधित कर चुके हैं.

पहले वर्ष यानी 2014 में जब अपनी पहली गैर कांग्रेस बहुमत वाली सरकार के साथ प्रधानमंत्री इस किले पर देश को आज़ादी के दिन संबोधित करने के लिए खड़े हुए थे तो उसमें एक दृष्टि थी. यह दृष्टि थी उनकी संकल्पना के भारत की और उन वादों के क्रियान्वयन की जो उन्होंने लोगों से चुनाव प्रचार के दौरान किए थे.

इस भाषण में उन्होंने एक अलग तरह से देश को आगे ले जाने के और आक्रामक तरीके से बदलाव लाने के संकेत दिए थे. बाद के भाषणों में वो विपक्ष पर प्रहार करते, अपने कामकाज को गिनाते और लोगों को सीधे प्रभावित करने वाले मुद्दों पर बोलते नज़र आए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अबतक के कार्यकाल में ऐसा शायद ही कभी हुआ हो जब वो चुनाव अभियान की मुद्रा में न नज़र आए हों. इसके पीछे वजह भी थी. देश में एक के बाद एक राज्यों के चुनाव सामने आते रहे और उनके भाषणों की शैली और विषय वस्तु उसको ध्यान में रखकर लोगों के सामने आता रही.

चुनाव का बिगुल

लेकिन लाल किले से पांचवां संबोधन प्रधानमंत्री मोदी के लिए खासा मायने रखता है. पार्टी के वरिष्ठ सूत्रों की मानें तो इसबार का भाषण आगामी लोकसभा चुनावों की दृष्टि से खासा महत्वपूर्ण रहने वाला है.

इसकी पुष्टि संघ के एक पदाधिकारी भी करते हैं. उन्होंने आजतक को बताया, “यह साल देश को अपनी उपलब्धियों के बारे में बताने का है. इसकी झलक 15 अगस्त को देखने को मिलेगी. मोदी जी का यह भाषण चुनाव अभियान का मंगलाचरण साबित होगा और यहीं से चुनाव अभियान का टोन सेट हो जाएगा.”

विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री का इस वर्ष का संबोधन अपनी उपलब्धियों को गिनाने से लेकर नए काम और कार्यक्रमों का लेखाजोखा होगा. साथ ही वो देश के सामने यह संकेत भी दे सकते हैं कि अगर लोगों को विकास के इस सिलसिले को आगे लेकर जाना है तो आगामी चुनाव में उनकी वापसी ही एकमात्र विकल्प है.

वैसे तो प्रधानमंत्री के सभी भाषण देशभर की नज़र में रहते हैं लेकिन लाल किले से देश को संबोधन पर लोगों की सबसे ज़्यादा नज़र रहती है. प्रधानमंत्री इस अवसर के महत्व को जानते हैं और उसके अनुरुप ही अपनी कथावस्तु लोगों के सामने रखते रहे हैं.

मॉनसून सत्र और इस बार के संबोधन के ठीक बाद देश को चार राज्यों में विधानसभा चुनाव देखना है और उन चुनावों के बाद आम चुनावों के लिए देश राजनीतिक प्रचार सुन रहा होगा. ऐसे में प्रधानमंत्री के लिए उनकी वर्तमान सरकार का अंतिम संबोधन देश को संदेश होने के साथ साथ एक चुनावी और राजनीतिक अवसर भी है जिसे अपने पक्ष में इस्तेमाल करना वो बखूबी जानते हैं.

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