जब अटल ने लिया परमाणु परीक्षण का साहसिक फैसला, हैरान थी दुनिया

नई दिल्ली 
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तबीयत बेहद नाजुक है. नई दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती वाजपेयी की तबीयत पिछले 24 घंटे में काफी खराब हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई केंद्रीय मंत्री उनकी तबीयत का पता करने पहुंचे. वाजपेयी का रुतबा भारतीय राजनीति में काफी ऊंचा है, पार्टी लाइन से हटकर नेता उनका सम्मान करते हैं. 1998 में जब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब उनकी अगुवाई में भारत ने परमाणु परीक्षण किया था. इस फैसले से पूरी दुनिया चकित रह गई थी.

11 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में तीन बमों के सफल परीक्षण के साथ भारत न्यूक्लियर स्टेट बन गया. ये देश के लिए गर्व का पल था. ऐसे में अगर पूछा जाए कि भारत को परमाणु राष्ट्र बनाने वाला प्रधानमंत्री कौन? जवाब मिलेगा अटल बिहारी वाजपेयी. हालांकि 19 मार्च 1998 को दूसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए अटल को कई क्षेत्रीय पार्टियों से समझौते करने पड़े थे. इसलिए भारत को परमाणु राष्ट्र बनाना इतना आसान नहीं था.

आइए जानते हैं कि कैसे अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम रहने के दौरान कैसे न्यूक्लियर स्टेट को हरी झंडी दिखाई थी. 1998 में भारतीय जनता पार्टी ‘देश की परमाणु नीति का और परमाणु अस्त्रों को तैनात करने के विकल्प का पुनर्मूल्यांकन’ करने तक को तैयार हो गई थी. इसका असर पार्टी की छवि पर भी पड़ा था.

अप्रैल 1998 में रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (IDSA) के निदेशक जसजीत सिंह ने कहा था, ‘उनकी (बीजेपी की) छवि तो ऐसी है कि वो मानो पहला काम ही परमाणु बम के परीक्षण का करेंगे, लेकिन उन्होंने काफी संयम दिखाया है.’ ऐसे में कहा जा सकता है कि जसजीत सिंह को अगले महीने पोखरण में होने वाले टेस्ट का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था.

न्यूक्लियर टेस्ट का काम पर्दे के पीछे जारी था. वहीं 1998 में ही सेनाध्यक्ष वीपी मलिक ने सेना की डिमांड खुलकर सामने रखी थी. 21 अप्रैल 1998 को उन्होंने कहा था, ‘परमाणु अस्त्रों और प्रक्षेपास्त्रों की बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार सेना की रणनीतिक प्रतिरोध क्षमता विकसित करे.’

सेना प्रमुख की तरफ से आई डिमांड के ठीक दो दिनों बाद रक्षा मंत्रालय के वैज्ञानिक सलाहकार एपीजे अब्दुल कलाम ने रक्षामंत्री की समिति को न्यूक्लियर प्रॉजेक्ट की जानकारी दी. इस समिति की अध्यक्षता उस समय के रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडिस कर रहे थे. अटल इसलिए भी परीक्षण जल्दी करना चाहते थे, क्योंकि चीन के बूते परमाणु हथियार दिखा रहे पाकिस्तान ने गौरी मिसाइल सफलतापूर्वक टेस्ट कर ली थी.

पाकिस्तान के सूचना मंत्री मुशाहिद हुसैन गौरी के विकास को ‘दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का प्रयास’ बता रहे थे. गौरी के अलावा पाक ‘गज़नवी मिसाइल’ पर भी काम कर रहा था. वहीं चीन-पाकिस्तान की सांठ-गांठ के अलावा अमेरिका और जापान समेत कई पश्चिमी देश भारत पर CTBT पर साइन करने के लिए दबाव डाल रहे थे.

11 मई की उस गर्म दोपहर को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने सरकारी घर 7 रेस कोर्स में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई. इसी प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में अटल ने परमाणु योजना की जानकारी दी.

हालांकि अटल बिहारी परमाणु टेस्‍ट का श्रेय पूर्व पीएम पीवी नरसिम्‍हा राव के देते हैं. राव को श्रद्धांजलि देते हुए अटल ने कहा था, ‘मई 1996 में जब मैंने राव के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली, तो उन्होंने मुझे बताया था कि बम तैयार है. मैंने तो सिर्फ विस्फोट किया है.’ असल में राव दिसंबर 1995 में परीक्षण की तैयारी कर चुके थे, लेकिन तब उन्हें किसी वजह से अपना मंसूबा मुल्तवी करना पड़ा. इसके पीछे कई थ्योरी गिनाई जाती हैं.

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट दावा करती है कि बहुत ही कम लोग इस बात को जानते हैं कि 1996 की अपनी 13 दिनों की सरकार में अटल ने जो इकलौता फैसला किया था, वो परमाणु कार्यक्रम को हरी झंडी देने का था. लेकिन जब उन्हें लगा कि उनकी सरकार स्थिर नहीं है, तो उन्होंने ये फैसला रद्द कर दिया. इन सारी घटनाओं से एक बात तो तय है कि राव और अटल, दोनों ही परमाणु कार्यक्रम को लेकर गंभीर थे और हर हाल में परीक्षण करना चाहते थे.

वाजपेयी ने अपने कई भाषणों में इस परमाणु टेस्‍ट का श्रेय परमाणु ऊर्जा विभाग के अध्यक्ष आर. चिदंबरम और दूसरे रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान के प्रमुख एपीजे अब्दुल कलाम को भी दिया.

आपको बता दें कि परमाणु टेस्‍ट के एक दिन बाद यानी 11 मई वाले परीक्षण के तीसरे दिन विदेशी टीवी नेटवर्कों की कैमरा टीमें पूरी दिल्ली में घूम रही थीं. वो पोखरण परीक्षण के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले लोगों को ढूंढ रहे थे, ताकि उन्हें भारत सरकार की आलोचना करने का कोई सिरा मिले. मगर अफसोस, उन्हें एक भी फोटो खींचने का मौका नहीं मिला.

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