एंटनी के सवाल पर बोलीं रक्षा मंत्री- यूपीए बताए HAL के साथ क्यों नहीं फाइनल हुआ राफेल सौदा

नई दिल्ली            
राफेल सौदे को लेकर मोदी सरकार और कांग्रेस के बीच खींचतान जारी है. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राफेल सौदे पर पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी के आरोपों पर मंगलवार को जवाब दिए. सीतारमण ने हिन्दुस्तान एरोनॉटिकल्स लिमिटेड (एचएएल) की क्षमता पर कहा कि राफेल डील यूपीए के शासनकाल में नहीं हो सकी थी और न ही दसॉल्ट और एचएएल के बीच उत्पादन को लेकर सहमति बन सकी थी. इस वजह से एचएएल और राफेल के बीच साझेदारी नहीं हो सकी. यूपीए को जवाब देना चाहिए कि वे एचएएल या भारतीय वायुसेना के हितों का ख्याल क्यों नहीं रख सके.

उन्होंने कहा कि एचएएल के साथ डील क्यों नहीं हो सकी, इसका जवाब यूपीए को देना चाहिए. उन्होंने केवल 36 विमानों की ही डील क्यों की गई, इसके जवाब में कहा कि स्क्वॉर्डन्स की आदर्श क्षमता 42 विमानों की है. यूपीए के शासनकाल में ही यह क्षमता कम होने लगी थी और 2013 तक यह घटकर 33 पर आ गई थी.

ऑफसेट के मामले पर निर्मला ने कहा कि पहले ऑफसेट सरकारी संस्थानों के साथ का था, अब प्राइवेट है. यह नियम यूपीए के शासनकाल से है. एयर फोर्स के लगातार कहने के बावजूद वे एचएएल के साथ बात पूरी नहीं कर सके थे या एचएएल और दसॉ के बीच समझौता नहीं करवा सके थे.

रक्षा मंत्री ने कहा, ऐसा कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने अपने आप डील कर ली और लागत के बारे में पता नहीं किया, यह गलत है. उन्होंने कहा कि पीएम या राष्ट्रपति कभी डील की बारीकियों की चर्चा नहीं करते, यह काम दोनों पक्षों के विशेषज्ञ करते हैं.

इससे पहले पूर्व रक्षा मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने मंगलवार को राफेल मुद्दे पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. एंटनी ने सवाल उठाया कि 126 राफेल खरीदने का प्रस्ताव था, तो इसे घटाकर 36 क्यों किया गया?

एंटनी ने कहा, हमारी सरकार के अंतिम दिनों में राफेल करार लगभग पूरा हो चुका था. 2015 में जब एनडीए की सरकार आई, तो 10 अप्रैल 2015 को 36 राफेल विमान खरीदने का एकतरफा फैसला लिया गया. जब एयरफोर्स ने 126 विमान मांगे थे, तो प्रधानमंत्री ने इसे घटाकर 36 क्यों किया, इसका जवाब देना चाहिए.

एंटनी ने केंद्र सरकार से पूछा, अगर यूपीए की डील खत्म नहीं की जाती, तो हिंदुस्तान एरोनॉटिकल लिमिटेड (एचएएल) को अति आधुनिक तकनीक ट्रांसफर पाने का मौका मिलता लेकिन अब उसे लड़ाकू विमान बनाने का अनुभव नहीं मिल पाएगा. भारत ने बहुत बड़ा मौका गंवा दिया.

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