फकीर से मिली थी मोहम्मद रफी को गाने की प्रेरणा, नाई की दुकान चलाते थे पिता

 
नई दिल्ली 

दिग्गज प्लेबैक सिंगर मोहम्मद रफी के इस दुनिया से विदा होने के कई दशक बाद भी उनका नाम ही उनकी पहचान के लिए काफी है. रफी वो शख्सियत हैं जिन्होंने 18 भाषाओं के 4516 से ज्यादा गानों को आवाज दी थी. उनकी पुण्यतिथि पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य.

24 दिसंबर 1924 को जन्मे रफी 31 जुलाई 1980 को इस दुनिया को अलविदा कह गए थे. वो रफी जिसने अपनी आवाज से करोड़ों को कायल कर दिया था, उनके बारे में कम ही लोग ये बात जानते हैं कि उन्हें गाने की पहली इंस्पिरेशन एक फकीर से मिली थी. दरअसल रफी के घर के करीब से एक फकीर गुजरा करता था जिसे देखकर वह उसकी तरह गाने की कोशिश किया करते थे. फिर धीरे-धीरे उन्हें इसका शौक लग गया. उनके पिता का नाम हाजी अली मोहम्मद था और वह अपने 6 भाइयों में दूसरे सबसे बड़े भाई थे. उनका परिवार वास्तविक रूप से अमृतसर पंजाब का रहने वाला था. रफी का घर पर निकनेम फीकू था और 1935 में जब उनके पिता लाहौर चले गए तो वहां रफी अपने पिता की दुकान पर बैठ कर गाने गाया करते थे. रफी के पिता उन दिनों नाई की दुकान पर काम करते थे.
 
इस तरह मिला था पहला मौका
एक बार कुंदन लाल स‍हगल ऑल इंडिया रेडियो में अपना शो करने आए थे. वहां रफी और उनके बड़े भाई भी उनको सुनने गए थे. तब रफी की उम्र 13 साल थी. प्रोग्राम में लाइट चले जाने से कुंदन लाल स‍हगल ने गाने से मना कर दिया. पब्ल‍िक ने शोर मचाना शुरू कर दिया. तभी रफी के बड़े भाई ने आयोजकों से कहा कि भीड़ को शांत करने के लिए रफी को गाने का मौका दिया जाए. वहां उस वक्त के मशहूर संगीतकार श्याम सुंदर भी मौजूद थे. वो मोहम्मद रफी की आवाज सुनकर बहुत खुश हुए और उन्हें वहीं गाने का मौका दिया.

 

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