भारतीय नौसेना का सेवामुक्त विमानवाहक युद्धपोत INS विराट अपने आखिरी सफर पर रवाना

मुंबई 
भारतीय नौसेना से रिटायर हो चुके विमानवाहक युद्धपोत विराट शनिवार को अपनी अंतिम समुद्री यात्रा पर गुजरात स्थित अलंग के लिए रवाना हुआ जहां उसे तोड़ जाने के बाद कबाड़ के रूप में बेच दिया जाएगा। विशालकाय युद्धपोत विराट को पूर्व नौसैनिकों ने गेटवे ऑफ इंडिया से भावभीनी विदाई दी। मार्च 2017 में सेवामुक्त किए जाने के बाद नौसेना डॉकयार्ड से विराट की अंतिम यात्रा की शुरुआत हो गई थी। इस तरह विराट का 56 साल से जारी सफर अब खत्म होने वाला है। आईएनएस विराट को शुक्रवार को ही जाना था लेकिन कुछ कारणों से एक दिन का विलंब हुआ। विराट ने भारतीय नौसेना में 30 वर्षों तक सेवा दी थी। मूल रूप से यह ब्रिटेन की रॉयल नेवी में एचएमएस हरमेस नामक युद्धपोत था जिसे की 1959 में नौसेना में शामिल किया गया था। इसके बाद इसे 1984 में इसे मुक्त कर दिया गया था। इसके बाद भारत ने 12 मई 1987 में जब इस युद्धपोत को खरीदा तब इसे भारतीय नौसेना में कमीशन होने के लिए इसे INS विराट के रूप में नामांकित किया और नौसेना का प्रमुख बन गया था।

कानूनी अड़चनों की वजह से इसे किसी दूसरे देश को नहीं बेचा गया। विराट को संग्रहालय बनाने का प्रयास किया गया था लेकिन वह सफल नहीं हुआ। आईएनएस विराट को संग्रहालय में बदलने को लेकर रक्षा राज्य मंत्री श्रीपद नाइक ने जुलाई 2019 में राज्यसभा में एक लिखित जवाब में कहा था कि महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश की राज्य सरकारों ने युद्धपोत को संग्रहालय में बदलने में रुचि दिखाई थी। भारतीय नौसेना में भी कई चाहते है कि जहाज को संग्रहालय में बदल दिया जाए। यहां तक की बीजेपी नेता राजीव चंद्रशेखर ने भी जहाज को स्क्रैप में जाने से बचाने के लिए हर संभव प्रयास करने की बात कही थी लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया और अब जहाज अपने आखिरी सफर पर निकल चुका है। अलंग स्थित श्री राम समूह ने इस युद्धपोत को तोड़ने की जिम्मेदारी ली है। एक अधिकारी ने कहा कि कंपनी के उच्च क्षमता वाले पोत विराट को समुद्र में खींच कर अलंग ले जा रहे हैं और इस गंतव्य तक पहुंचने में दो दिन लगेंगे। अलंग में पोत का तोड़ने वाला विश्व का सबसे बड़ा यार्ड है। भारतीय नौसेना में शामिल होने के बाद आइएनएस विराट जुलाई 1989 में ऑपरेशन जुपिटर में शामिल था, यह ऑपरेशन भारत श्रीलंकाई समझोते के टूटने के बाद लॉन्च किया गया था। भारत के लिए यह इसका पहला ऑपरेशन जरूर था लेकिन इससे पहले यह रॉयल नेवी में रहते हुए कई ऑपरेशनों को अंजाम दिया था।

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