बिहार में हर महीने की 19 तरीख को मनाया जाता अन्नप्राशन दिवस, बच्चों को सुपोषित करने की पहल

 पटना 
आज बिहार के आंगनवाड़ी सेविकाओं द्वारा अन्नप्राशन दिवस मनाया गया। इस अवसर पर आंगनवाड़ी सेविकाओं ने पोषक क्षेत्र के 6 माह से ऊपर के बच्चों का अन्नप्राशन, उनके घर पर जा कर शारीरिक दूरी का पालन करते हुए करवाया। गौरतलब है की बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए 6 माह के हो जाने के बाद ऊपरी आहार की शुरुआत बहुत ही महत्वपूर्ण है। समाज में बच्चों के आहार को लेकर एक जन आन्दोलन बनाने और बच्चों के सही समय पर उपरी आहार शुरू करने के लिए बिहार सरकार ने हर माह 19 तारीख को प्रदेश के सभी आंगनवाड़ी में अन्नाप्राशन दिवस मनाने की शुरुआत की गई है।  

आईसीडीएस के निदेशक आलोक कुमार ने कहा कि जन्म के 6 माह के बाद सिर्फ मां का दूध बच्चों के पोषण के लिए ही पर्याप्त नहीं होता। इनके समुचित विकास के लिए उपरी आहार भी खिलाना जरुरी होता है।  विशेषकर 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की आशंका सर्वाधिक होती है। गर्भावस्था से लेकर जीवन के पहले दो वर्षो की आयु (प्रथम हज़ार दिन) में प्राप्त पोषण का सीधा प्रभाव बच्चो के विकास एवं वृधि दर पर पड़ता है।  

इस पहल के बारे में बताते हुए समाज कल्याण विभाग की सहायक निदेशक और बिहार में पोषण अभियान की नोडल पदाधिकारी  श्वेता सहाय कहती हैं हम इस पहल के माध्यम से अभिभावकों को बच्चों में सही समय और पर्याप्त मात्रा तथा गुणवत्तापूर्ण आहार के बारे में प्रेरित करते हैं । इसमें हम ज्यादा ध्यान पिता और परिवार तथा समाज के अन्य पुरुष सदस्यों पर देते है ताकि वो भी अपने ।बच्चों के पोषण और लालन पालन में सहयोग करें क्यूंकि बच्चों के पोषण में पिता की भूमिका माँ के बराबर महत्वपूर्ण हैं। 

भारत सरकार कॉम्प्रिहेंसिव नेशनल न्यूट्रिशन सर्वे 2018  के अनुसार, राज्य में 5 साल से कम उम्र के 42 प्रतिशत बच्चे नाटापन के शिकार हैं। हाल के समय में, बिहार ने स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव आये हैं । राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4 (2015-16) के तुलना में राज्य में नाटापन में कमी आई है। LANCET 2019 के अध्ययन के अनुसार, पांच वर्ष से कम आयु के 68 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु के लिए किसी न किसी प्रकार से कुपोषण जिम्मेदार है।  

बच्चों के बेहतर पोषण का सीधा प्रभाव उनके बिमारियों से सुरक्षित रहने और सीखने में पड़ता है और वो समाज में आगे चल कर बेहतर योगदान दे पाते हैं।  बेहतर रूप से पोषित आबादी वाला समाज अधिक उत्पादक, आर्थिक रूप से ज्यादा सशक्त होता है। इस प्रकार की पहल से राज्य के साथ-साथ देश में भी कुपोषण को कम करने में मदद मिलेगी। कुपोषण को कम करने के लिए इस प्रकार के उत्सवों को सामूहिक और वृहत रूप से मनाये जाने की भी जरुरत है ।

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