2019 के दावों पर सवालिया निशान

लखनऊ 
कैराना और नूरपुर में भी सीटें गंवाने के बाद बीजेपी ने यूपी में हार का 'चौका' लगाया है। पार्टी को यह झटका ऐसे समय लगा है, जब मोदी सरकार की चार साल की उपलब्धियां बताने राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर बूथ कार्यकर्ता तक घर-घर जा रहे हैं। योगी सरकार बनने के बाद पार्टी सिकंदरा विधानसभा छोड़कर एक भी सीट नहीं जीत सकी है। 
 
हारी हुई सीटों में खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर संसदीय सीट भी है। ऐसे में पार्टी के मिशन 2019 के दावों पर सवालिया निशान खड़े होने शुरू हो गए हैं। कैराना और नूरपुर की हार ने बीजेपी के लिए दोहरी मुश्किल खड़ी की है। हौसले की पेशबंदी में तो पार्टी कमजोर पड़ी ही है, वेस्ट यूपी में जाट वोटरों के पार्टी से छिटकने का खतरा और बढ़ गया है। जाटों के खिसकने और विपक्ष के एक होने के बाद वेस्ट यूपी में पार्टी के लिए जमीनी बचाना और मुश्किल हो सकता है। 

बीजेपी में बढ़ेगी गुटबाजी? 
चार साल में पार्टी के पास यहां जाट नेतृत्व खड़ा करने का मौका था, लेकिन 'अहम' की लड़ाई और वोटरों को 'फॉर ग्रांटेड' लेने के अति आत्मविश्वास में इस दिशा में काम ही नहीं हुआ। जिस मुजफ्फरनगर दंगे ने 2014 और 2017 में ध्रुवीकरण की बुनियाद रखी थी, उससे प्रभावित जाट वोटरों की 'अपेक्षा' पर भी पार्टी खरी नहीं उतरी। मुकदमा वापसी के वादे बड़े नेताओं तक सीमित रहे। 

 
वहीं, पूर्वांचल में भी जातीय समीकरण विपक्षी एकता के पक्ष में है। फिलहाल, योगी आदित्यनाथ की अगुआई में लगातार मिली हार से विपक्ष के साथ सरकार और पार्टी के अंदर से भी 'अनापेक्षित' सुर तेज होंगे। योगी की व्यक्तिगत ब्रैंडिंग के लिए भी हार खतरा पैदा कर रही है। वहीं, कई तालों और सुरक्षा गार्डों के बीच में बैठे आला पदाधिकारियों के खिलाफ कार्यकर्ताओं के गुस्से को फूटने की भी वजह मिल गई है। यह 'नाउम्मीदी' 2019 साधने में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी मुश्किल है। 

सबक के साथ धुंधली उम्मीद भी 
गोरखपुर-फूलपुर से पार्टी ने इतना सबक लिया कि कैराना-नूरपुर के चुनाव में पूरी ताकत झोंकी। इसका असर यह रहा कि संयुक्त विपक्ष और काफी कम मतदान के बाद भी पार्टी के वोट शेयर में बहुत गिरावट नहीं आई। कैराना में 2014 में बीजेपी को 50.54% वोट मिले थे। उपचुनाव में संयुक्त विपक्ष के बाद भी पार्टी को 46.5% वोट मिले हैं। करीब 18% कम मतदान के बाद भी 4% वोटों का घटना 2019 के लिए धुंधली उम्मीद भी है। वहीं, नूरपुर में पार्टी को 2017 के मुकाबले 10 हजार वोट अधिक मिले हैं। 

 
हालांकि, आंकड़ों के इस खेल में अहम तथ्य यह भी है कि बीजेपी के प्रचार में पीएम नरेंद्र मोदी तक अप्रत्यक्ष तौर पर उतर गए थे जबकि विपक्ष में सबसे बड़े चेहरे अजित-जयंत ही थे। वहीं, मायावती ने भी खुले तौर पर समर्थन की घोषणा नहीं की थी। फिलहाल पार्टी की हार पर बीजेपी के हरदोई विधायक श्याम प्रकाश ने 'दु:ख' जताते हुए दोहे लिखे हैं 'मोदी नाम से पा गए राज, कर न सके जनता मन काज, समझदार को ये है इशारा, आगे है अधिकार तुम्हारा'। उधर, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय कहते हैं कि नतीजे हमारे अनुकूल नहीं रहे। इसकी गहन समीक्षा करेंगे। झूठ और फतवों की राजनीति ज्यादा दिन नहीं चलेगी। 

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