मध्य प्रदेश में भोपाल नगर निगम आज अपना 69वां आजादी दिवस मना रहा है

1 जून को भोपाल के जन्म दिवस के तौर पर मनाया जाता है. आज भोपाल नगर निगम अपना 69वां  आजादी दिवस मना रहा है. तर्क ये है कि जब देश के लोग खुली हवा में आजादी की सांस ले रहे थे, तो उस समय भोपाल रियासत के नवाब की रहनुमाई में देश से आजादी की मांग कर रहे थे.

भोपाल रियासत की कहानी
1947 यानी जब भारत को आजादी मिली उस समय भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह थे. जो न सिर्फ नेहरू और जिन्ना के बल्कि अंग्रेज़ों के भी काफी अच्छे दोस्त थे. जब भारत को आजाद करने का फैसला किया गया उस समय यह निर्णय भी लिया गया कि पूरे देश में से राजकीय शासन हटा लिया जाएगा, यानी भोपाल के नवाब भी बस नाम के नवाब रह जाते और भोपाल आजाद भारत का हिस्सा बन जाता.

अंग्रेजों के खास नवाब हमीदुल्लाह इसके बिल्कुल भी पक्ष में नहीं थे, इसलिए वो भोपाल को आजाद ही रखना चाहते थे ताकि वो इस पर आसानी से शासन कर सकें. इसी बीच पाकिस्तान बनने का फैसला हुआ और जिन्ना ने भारत के सभी मुस्लिम शासकों सहित भोपाल के नवाब को भी पाकिस्तान का हिस्सा बनने का प्रस्ताव दिया.

जिन्ना के करीबी होने के कारण नवाब को पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद सौंपने की भी बात की गई. ऐसे में हमीदुल्लाह ने अपनी बेटी आबिदा को भोपाल का शासक बन कर रियासत संभालने को कहा लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया. आखिरकार नवाब भोपाल में ही रहे और इसे आजाद बनाए रखने के लिए आजाद भारत की सरकार के खिलाफ हो गए.

भोपाल में नहीं फहरा था तिरंगा
आजाद होने पर भी भोपाल में भारत का राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया गया. यहां तक की अगले दो साल तक ऐसी ही स्थिति बनी रही. जिसमें नवाब भारत के आजादी के या सरकार के किसी भी जश्न में कभी शामिल नहीं हुए.

मार्च 1948 में नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा कर दी. मई 1948 में नवाब ने भोपाल सरकार का एक मंत्रीमंडल घोषित कर दिया. प्रधानमंत्री चतुरनारायण मालवीय बनाए गए. तब तक भोपाल रियासत में विलीनीकरण के लिए विद्रोह शुरू हो चुका था.

इस बीच आजाद भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सख्त रवैया अपनाकर नवाब के पास संदेश भेजा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं रह सकता. भोपाल को मध्यभारत का हिस्सा बनना ही होगा. 29 जनवरी 1949 को नवाब ने मंत्रिमंडल को बर्खास्त करते हुए सत्ता के सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए. विलीनीकरण के लिए तीन महीने जमकर आंदोलन हुए.

जब नवाब हमीदुल्ला हर तरह से हार गए तो उन्होंने अपनी हार स्वीकारते हुए 30 अप्रैल 1949 को विलीनीकरण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए. जिसके बाद आखिरकार 1 जून 1949 को भोपाल रियासत भारत का हिस्सा बन गई. केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त चीफ कमिश्नर एनबी बैनर्जी ने भोपाल का कार्यभार संभाल लिया और नवाब को 11 लाख सालाना का प्रिवीपर्स तय कर सत्ता के सभी अधिकार उनसे ले लिए गए.

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