एक डॉक्टर को तैयार करने में सरकार खर्च करती है तीन करोड़ रुपए

रायपुर
राज्य के शासकीय मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस सीट पर दाखिला लेने वाले एक छात्र को डॉक्टर बनाने में सरकार तीन करोड़ रुपये खर्च करती है। इसमें डॉक्टर/प्रोफेसर का वेतन, कॉलेज का इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर प्रयोगशाला, हॉस्टल और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) में मान्यता के आवेदन का खर्च शामिल है। तो क्यों नहीं इनसे एमबीबीसी के बाद दो साल की शासकीय सेवा करवाई जाए?

नियम तो बनाए गए यह सोचकर की इन डॉक्टर्स को ग्रामीण अंचलों के स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेजों में पोस्टिंग देकर प्रदेश में डॉक्टर्स की कमी कुछ हद तक पूरी की जाएगी।

ग्रामीण सेवा में जाने पर 2013 तक अनारक्षित वर्ग के छात्रों को पांच लाख, आरक्षित वर्ग के लिए तीन लाख जुर्माने का प्रावधान था। लेकिन जानकर हैरानी होगी कि 75-80 फीसद डॉक्टर ने इस राशि को बतौर जुर्माना भरा और दो साल शासकीय सेवाएं में सेवाएं नहीं दी।

2017-18 में पं. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के शासकीय कोटा सीट पर दाखिला लेने वाले 124 एमबीबीएस डिग्रीधारियों में सिर्फ 28 ही शासकीय सेवा में गए। यही वजह है कि सरकार ने पांच लाख और तीन लाख के जुर्माने को बढ़ाकर 25 लाख और 20 लाख कर दिया है। अगले सत्र में 2013 का बैच पास आउट होगा, देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोई ऐसा भी है जो 25 लाख और 20 लाख का जुर्माना भरेगा।

सीट कम इसलिए नियम

प्रदेश में पिछले साल एमबीबीएस की 850 सीट थी, इस साल सिर्फ 550 ही रह गई। अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज पिछले साल जीरो ईयर था, इस साल उसे 100 सीट की मान्यता मिली है जबकि तीनों निजी कॉलेज जीरो ईयर हो गए हैं।

ऑल इंडिया कोटा वालों के लिए भी नियम

दो साल की शासकीय सेवा का नियम सिर्फ राज्य कोटा सीट पर दाखिला लेने वालों पर लागू था, लेकिन सत्र 2018-19 के प्रवेश नियम में इसे संशोधित कर ऑल इंडिया कोटा सीट पर दाखिला लेने वाले छात्रों पर भी लागू कर दिया गया है। यानी अब 100 फीसद एमबीबीएस डिग्रीधारियों को शासकीय सेवा करनी होगी।

2013 तक एमबीबीएस सीटों की स्थिति

पं. जवाहरलाल नेहरू में राज्य कोटा की 124 सीट, छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (सिम्स) बिलासपुर में 82, स्व. बलीराम कश्यप मेमोरियल मेडिकल कॉलेज में 82 सीट। इनमें से 75 फीसद ने जुर्माना भर दिया।

इस साल से पीजी में भी लागू किया शासकीय सेवा

सत्र 2017-18 में मेडिकल कॉलेजों की पीजी सीट पर दाखिला लेने वालों को भी दो साल की शासकीय सेवा अनिवार्य कर दी गई है। ये स्पेशलिस्ट की कमी को पूरा करने की दिशा में उठाया गया कदम है। न करने पर 50 लाख रुपये जुर्माना भरना होगा।

ग्रामीण अंचलों में डॉक्टर्स की जरूरत

हमें ग्रामीण अंचलों के लिए डॉक्टर्स की जरुरत है। सरकार डॉक्टर बनाने में करोड़ों रुपये खर्च करती है तो क्यों न उनकी सेवा मरीजों को मिले। शासकीय सेवा की अनिवार्यता थी, आज भी लेकिन पहले न करने पर जुर्माना की राशि कम थी। इसलिए इसे बढ़ाया गया। – डॉ. अशोक चंद्राकर, संचालक, चिकित्सा शिक्षा

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