वेटलिफ्टिंग चैंपियन अनुराधा को मां ने मजदूरी कर बनाया चैंपियन

नई दिल्ली
अनुराधा के पिता बचपन में गुजर गए थे। मां ने खेतों में मजदूरी कर उन्हें और उनके भाई को बड़ा किया। कड़े संघर्ष कष्ट भरे जीवन के बीच अनुराधा ने गांव के स्कूल से सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया तो यहीं एक अध्यापक ने उन्हें वेटलिफ्टिंग शुरू करा दी।

कॉलेज और यूनिवर्सिटी स्तर पर उनके पदक आने लगे तो गांव के कोच ने समझाया एनआईएस का कोचिंग डिप्लोमा कर लो नौकरी लग जाएगी। 21 साल की उम्र में अनुराधा को पटियाला में दाखिला मिल गया। यहां चीफ कोच ने कहा तुम्हारी उम्र कोच बनने की नहीं बल्कि लिफ्टिंग करने की है।

डिप्लोमा करने के दौरान ही अनुराधा ने पहली बार सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप खेल पदक जीता और दो साल के अंदर ही तमिलनाडु पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी हासिल कर ली। अनुराधा यहीं पीछे  नहीं हटीं। उन्होंने इसके  बाद लगातार दो राष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण जीत भारतीय टीम में जगह बनाई और राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप के साथ सैफ खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

तमिलनाडु के पुडुकोडोई जिले के नेमेलिपट्टी गांव की अनुराधा गर्व से कहती हैं कि वह अपने गांव में सरकारी  नौकरी हासिल करने वाली एकमात्र महिला हैं। वह अपने बचपन को याद कर भावुक हो जाती हैं। मां और भाई ने उनके लिए बड़ा त्याग किया है।

भाई ने हमेशा वेटलिफ्टिंग में कुछ करने के लिए प्रेरित किया। मां के साथ मिलकर भाई खुद भूखे रह जाते थे लेकिन उन्हें खाने  के लिए देते थे क्यों कि उन्हें वेटलिफ्टिंग करना होता था। यही कारण था कि वह कॉलेज में यही सोचती रहती थीं कि किसी तरह इस खेल के जरिए नौकरी मिल जाए तो वह भाई और मां का सहारा बन जाएं।

वह तो भला हो एनआईएस कोच जीएस बरीकी सर का जिन्होंने उन्हें कोच नहीं बल्कि वेटलिफंर्टग खेलने को प्रेरित किया। अनुराधा इस वक्त ओलंपिक और राष्ट्रमंडल खेलों  की  तैयारियों को चल रहे राष्ट्रीय शिविर में शामिल हैं। उनका अगला लक्ष्य 87 किलो भार वर्ग में ब्रिस्बेन राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतना है।

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