क्या संघ को स्वयंसेवकों का ‘शुद्धिकरण’ कराना पड़ेगा?

 
बड़े दिनों बाद प्रणब मुखर्जी ने खुलकर बातें की हैं. राष्ट्रपति रहते हुए तो वे सरकार के भाषण ही पढ़ने को मजबूर थे. इस फर्क को क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)  समझने से चूक गया था? या वाकई अपने स्वयंसेवकों को ‘हिंदुत्व से परे’ भी सोचने, समझने, विचारने की दिमागी छूट देता है. नागपुर में प्रणब मुखर्जी ने स्वयंसेवकों को जो शिक्षा दी क्या उसे डिलीट करने के लिए संघ अपने स्वयंसेवकों की फिर से क्लास लेगा? ऐसा नहीं हुआ तो स्वयंसेवक कंफ्यूज रहेंगे कि हिंदू राष्ट्रवाद का झंडा उठाएं या सहिष्णु बनें.

आरएसएस के मंच पर मुखर्जी ने राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर विस्तार से बातें कीं. उनके भाषण का बड़ा हिस्सा एकेडमिक रहा. पर लब्बोलुआब है कि भारत एक ‘राष्ट्र’ नहीं, विविधताओं वाला देश है. भारत विविधताओं में एकता वाला देश है, हम बचपन से पढ़ते आए, देखते आए. लेकिन अबकी बार की सरकार ने नया पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया- वन नेशन-वन टैक्स, वन नेशन-वन टेस्ट, वन नेशन-वन इलेक्शन, वन नेशन-वन पेंशन.
 स्वयंसेवकों के तृतीय वर्ष समापन समारोह में भागवत ने प्रणब मुखर्जी को आमंत्रित करने को सही ठहराते हुए जो कुछ भी कहा, उससे भी स्वयंसेवकों की उलझन बढ़ गई है. भागवत ने एक तरफ संघ की खांटी बातें कीं- हम सब एक हैं,  सबके पूर्वज एक ही हैं,  सबके जीवन पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव है.  दूसरी तरफ उन्होंने विविधता में एकता की बात कह डाली. भागवत जैसे विद्वान इन दोनों बातों को एक दर्शन बता सकते हैं लेकिन तीन साल के प्रशिक्षण के बाद स्वयंसेवकों को यह संशय जरूर हो सकता है कि दूसरा वाला संदेश कितना निगला जाए.

देश के अंदर सैकड़ों हजारों जातियां-प्रजातियां, भाषा, खानपान, धर्म, पूजा-पाठ, रहन-सहन वाले लोग रहते हैं. विविधता की इस बात को स्वीकार करें… या भारत हिंदुओं का देश है, हिंदु कोई धर्म नहीं संस्कृति है, जन्म से सभी भारतीय हिंदू हैं जैसे विचार को कंठस्थ रखें और मूल मंत्र मानें- स्वयंसेवकों को कंफ्यूज करने के लिए काफी है. हालांकि यह कंफ्यूजन तब नहीं होगा जब प्रणब मुखर्जी की बातों को किसी बाहरी का नैतिक भाषण मानें और भागवत के समापन ज्ञान को औपचारिकता. दूसरा भरोसा भी है. मस्तिष्क में सिर्फ एक विचारधारा भर ही जगह होने के कारण वे विविध बातों को कोई स्पेस नहीं देंगे और हिंदुत्व पर अटल रहेंगे. जो विविधताओं में उलझकर कंफ्यूज होंगे उन स्वयंसेवकों के ज्ञान का शुद्धिकरण कराना पड़ेगा.

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