‘RSS के विचारों से प्रभावित था मुखर्जी का भाषण’

 नई दिल्ली 
पिछले हफ्ते नागपुर में 'संघ शिक्षा वर्ग- तृतीय वर्ष' के समारोह को संबोधित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बहुलता को बनाए रखने की जरूरत की बात कही तो आरएसएस ने कहा कि वह पिछले कई वर्षों से इसका प्रचार कर रहा है और यही हिंदू धर्म का भी प्रतीक है। आरएसएस की मुखपत्र पत्रिका ऑर्गनाइजर और पांचजन्य ने अपने ताजा अंक में 7 जून के कार्यक्रम को कवर स्टोरी बनाते हुए उसका विश्लेषण किया है।  
 

अपने विश्लेषण में दोनों पत्रिकाओं ने इस पर जोर दिया है कि मुखर्जी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के भाषण में काफी हद तक समानता थी। पांचजन्य ने मुखर्जी के आने को ‘बहुलता के लिए जीत, हिंदू धर्म को बढ़ावा देने वाले विचार’ बताया है। लेखक रतन शारदा के लिखे गए आर्टिकल में कहा गया है कि मुखर्जी ने बहुलता पर बल दिया, जिसे हिंदू धर्म बढ़ावा देता है। यह इस्लाम या ईसाई धर्म जैसे धर्मों के विपरीत है, जिनका मानना है कि ‘जिस सत्य पर वे विश्वास करते हैं, वही शाश्वत सत्य है।’ 

ऑर्गनाइजर की कवर स्टोरी
कवर स्टोरी के मुताबिक, 'संघ ने उम्मीद नहीं की थी कि प्रणब उसका समर्थन करेंगे या उसकी भाषा बोलेंगे, लेकिन उन्होंने जो कहा वह संघ के प्रचार के समान ही है। उन्होंने कहा कि यह सब एक कांग्रेस नेता होने की सीमा में रहते हुए कहा है।' वहीं, ऑर्गनाइजर की रिपोर्टिंग में कहा गया है कि पूर्व राष्ट्रपति ने सभी तरह की हिंसा को खत्म करने पर जोर दिया। उन्होंने दूसरे मुद्दों सहित पुरातन मूल्यों और राष्ट्रवाद के महत्व पर अपने विचार रखे। 

पत्रिका ने इस बात का भी जिक्र किया गया है कि मुखर्जी ने अपने भाषण का अंत ‘वंदे मातरम्’ के उद्घोष के साथ किया, जो कांग्रेस पार्टी और देश के इस्लामवादियों को बिल्कुल भी पसंद नहीं है। आरएसएस से जुड़े राजनीतिक विश्लेषक विराग पचपुर ने ऑर्गनाइजर में लिखा, ‘मुखर्जी ने भारत को खुशहाल देश बनाने के लिए शारीरिक और मौखिक हिंसा, दोनों से मुक्त करने के लिए कहा। उन्होंने स्वयंसेवकों से शांति, सद्भाव और खुशी का एजेंट बनने की अपील की थी। केवल यही चीज देश को एक खुशहाल राष्ट्र बनाने में सक्षम होगी, जहां राष्ट्रवाद अपने आप बहेगा।’ 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button