MP हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: पूर्व मुख्यमंत्रियों से खाली कराए जाएंगे सरकारी बंगले
जबलपुर
मध्य प्रदेश में मुफ्त में सरकारी बंगले का सुख भोगने वाले पूर्व मुख्यमंत्रियों को अब सरकारी बंगले खाली करने पड़ेंगे। इस आशय का एक बड़ा फैसला मंगलवार को एमपी हाईकोर्ट ने दिया है। एमपी हाईकोर्ट ने मप्र मंत्री वेतन एवं भत्ता अधिनियम में 2017 में किए गए संशोधन को असंवैधानिक बताया है और सरकारी बंगलों में काबिज पूर्व मुख्यमंत्रियों से आवास खाली कराने के भी निर्देश दिए हैं। इस बड़े फैसले से सूबे में सनसनी मच गई है। विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष के भी कई पूर्व मुख्यमंत्रियों को अब मुफ्त के सरकारी आवास खाली करने पड़ेंगे।
यह है मामला
सिविल लाइंस जबलपुर निवासी विधि के छात्र रौनक यादव की ओर से जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों कैलाश जोशी, दिग्विजय सिंह व उमा भारती को तत्कालीन राज्य सरकार ने सरकारी आवास आवंटित किए थे। लेकिन इन्होंने मुख्यमंत्री पद पर न रहने के बावजूद इन बंगलों पर कब्जा कर रखा है। इसके अलावा कई प्रशासनिक व शासकीय अधिकारी भी भोपाल में पदस्थ न होने के बावजूद यहां शासकीय बंगलों में कब्जा किए हुए हैं। इसे मप्र मंत्री ( वेतन तथा भत्ता ) अधिनियम 1972 के प्रावधानों का उल्लंघन बताते हुए याचिका में इन बंगलों को खाली कराने व अनधिकृत उपयोग की अवधि का किराया वसूल किए जाने का आग्रह किया गया है।
तो पूर्व मंत्रियों को क्यों नहीं
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विपिन यादव ने कोर्ट को बताया कि याचिका लंबित रहने के दौरान 24 अगस्त 2017 को मप्र मंत्री (वेतन तथा भत्ता) अधिनियम संशोधन 2017 अधिसूचित किया गया। इसके तहत वर्तमान मंत्रियों व पूर्व मुख्यमंत्रियों को मुफ्त सरकारी आवास प्रदान करने की व्यवस्था दी गई है, लेकिन पूर्व मंत्रियों को मुफ्त सरकारी आवास देने का प्रावधान नहीं है। लिहाजा यह संशोधन निरस्त किए जाने योग्य है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने रा’य सरकार से चार सप्ताह में अपना पक्ष प्रस्तुत करने को कहा। सरकार का पक्ष अतिरिक्त महाधिवक्ता समदर्शी तिवारी ने रखा।
नहीं पेश की सूची
गत सुनवाई में कोर्ट ने सरकार से यह पूछा था कि संशोधित नियमों के तहत जिन पूर्व मंत्रियों, पूर्व-मुख्यमंत्रियों को मुफ्त सरकारी आवास दिए जाने हैं, उनके पास प्रदेश के अलावा देश के किसी अन्य स्थान पर सरकारी आवास तो आवंटित नहीं है? मंगलवार को सरकार ने इस संबंध में कोई ठोस जानकारी प्रस्तुत नहीं की। याचिकाकर्ता की ओर से इस पर भी आपत्ति जताई गई थी।
संशोधन भी असंवैधानिक
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विपिन यादव ने कोर्ट को बताया कि याचिका लंबित रहने के दौरान 24 अगस्त, 2017 को मप्र मंत्री ( वेतन तथा भत्ता ) अधिनियम संशोधन 2017 अधिसूचित किया गया। इसके तहत वर्तमान मंत्रियों व पूर्व मुख्यमंत्रियों को मुफ्त सरकारी आवास प्रदान करने की व्यवस्था दी गई है। लेकिन यह संशोधन संवैधानिक नहीं है। चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता के तर्कों को सही माना है और संशोधन को असंवैधानिक करार दिया है।