ट्रंप की विदेश नीति के कारण भारत को झेलना पड़ सकता है बड़ा नुकसान

वॉशिंगटन 
भारत-अमेरिका संबंध में आया हालिया ठंडपन उसी कॉलेटरल डैमेज का हिस्सा है, जिसे अमेरिका कम आंक रहा है। क्योंकि फिलहाल यह उत्तर-कोरिया के साथ हुई डील को लेकर डॉनल्ड ट्रंप के आशावाद को पूरा करने की कोशिश में जुटा है। बता दें कि ट्रंप प्रशासन ने 6 जुलाई को होने जा रहे बहु-प्रतीक्षित भारत-अमेरिका 2+2 डायलॉग को बीच में ही टाल दिया, इसकी मुख्य वजह विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो का इस सप्ताह उत्तर कोरिया दौरा था, जो अमेरिका और प्योंगयांग के बीच हुई डील पर आगे की कार्रवाई देखने गए हैं। यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका का मानना है कि उत्तर कोरिया परमाणु निरस्त्रीकरण पर किए गए वादे से पीछे हट रहा है।  
 

यह दौरा तब भी जरूरी हो गया था, जब ऐसी खबरें थीं कि उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार और बढ़ोतरी का काम जारी रखा है। ग्रुप 38 नॉर्थ के अमेरिकी विशेषज्ञों ने उत्तर कोरिया की गतिविधि को ट्रैक किया है और उनका कहना है कि हालिया कमर्शल सैटलाइट की तस्वीर 21 जून की हैं, जिसके 10 दिन पहले ही ट्रंप और उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग-उन की मुलाकात हुई थी। उनका कहना है कि उत्तर कोरिया के योंगब्योंग न्यूक्लियर साइंटिफिक रिसर्च सेंटर के इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार कार्य तेज गति से हो रहा है। 

इन सब वजहों से पॉम्पियो प्योंगयांग रवाना हुए, जबकि ट्रंप ने मॉस्को के साथ अपनी बैठक को प्राथमिकता में रखा था, इसने न सिर्फ भारत बल्कि सभी दोस्तों और सहयोगियों को दरकिनार कर दिया। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने हालांकि इस बात पर जोर दिया कि भारत-अमेरिका संबंध ट्रंप प्रशासन के लिए बड़ी प्राथमिकता है और अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा में भारत की केंद्रीय भूमिका राष्ट्रपति के नैशनल सिक्यॉरिटी स्ट्रेटेजी का हिस्सा है। 

नई दिल्ली शायद अमेरिकी विदेश मंत्रालय के 'समय के अभाव' की सफाई को सहज तरीके से ले रहा है, लेकिन बड़ी बात यह है ट्रंप के खुद के नजरिए से अमेरिकी विदेश नीति के पुनर्निर्माण से भारत को बड़ा नुकसान हो सकता है। इसके तहत करीब 70 साल पुरानी संधियों की व्यवस्था, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के अटलांटिक सहयोग को केंद्रित कर बनाए गए नियमों और साथ ही ओबामा द्वारा एशिया को केंद्र बिंदु बनाए जाने की नीति को छोड़ा जा सका है। बता दें कि ओबामा की इस नीति से भारत को एशिया और विश्व शक्ति के रूप में उभरने और चीन की बराबरी करने में मदद मिली है। 

इस बड़े बदलाव की वजह दो खबरें मानी जा रही हैं। माना जा रहा है कि ट्रंप ने जर्मनी में अपने सैनिकों की तैनाती का पुनराकलन करने चाहते हैं क्योंकि वह अमेरिकी (35,000 सैनिक) की मौजूदगी के आकार से हैं। यह पैसला ऐसे समय में हुआ है जब उनका मानना है कि अमेरिकी सहयोगी अपनी मिलिटरी पर ज्यादा पैसा खर्च नहीं कर रहे हैं और उन्हें सुरक्षा के लिए अमेरिका को और पैसा देना चाहिए। 

इसके अतिरिक्त ट्रंप विश्व व्यापार संगठन से निकलने पर भी विचार कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने कहा कि वे हमेशा डब्ल्यूटीओ द्वारा प्रताड़ित किए जाते हैं। ट्रंप ने कहा, 'मुझे नहीं पता हम इसमें क्यों हैं। डब्ल्यूटीओ को इसलिए बनाया गया है ताकि पूरी दुनिया अमेरिका को दबाता रहे।' ट्रंप का मानना है कि भारत सहित विश्व के सभी देश अमेरिका के अरबों डॉलर ठग रहे हैं। ट्रंप ने हालांकि, खुद डब्ल्यूटीओ से निकलने से इनकार किया है, लेकिन साथ ही शिकायत की है कि हमारे साथ बहुत बुरा बर्ताव हुआ है, यह बेहद अनुचित स्थिति है। 

इधर, भारतीय वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु ने पिछले सप्ताह अमेरिका दौरे पर वहां के अधिकारियों को समझाने की कोशिश की कि अमेरिका का भारत के साथ व्यापार घाटा 23 अरब डॉलर का है, जिसे अर्थव्यवस्था के साथ आसानी से खत्म किया जा सका है, जो बड़े पैमाने पर अमेरिका की ऊर्जा, हथियार और टेक्नॉलजी खरीदेगा। हालांकि, अमेरिकी अधिकारियों ने समझा कि यह सच है, लेकिन वह ट्रंप को नहीं समझा सकते जो कि खुद विश्व व्यापार और अर्थव्यवस्था का जीनियस समझते हैं। 
 

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