सवालों के घेरे में पूरा प्रशासन, अवैध निर्माण की सूचना पर भी कोई कार्रवाई नहीं

ग्रेटर नोएडा 
ग्रेटर नोएडा वेस्ट के शाहबेरी में कल तक जहां उम्मीदों का आशियाना खड़ा था, वहां अब मौत का सन्नाटा पसरा है। दोनों बिल्डिंगें जमींदोज हैं और इसमें सपने के साथ लोगों के अपने भी गुम हैं। मंगलवार रात भरभराकर गिरीं दो इमारतों ने 3 जिंदगियां लील लीं, जबकि 14-15 लोग इसमें दबे बताए जा रहे हैं। पीड़ितों के परिजन बदहवास हैं। जाएं तो कहां जाएं। करें तो क्या करें। इस हादसे के बाद अवैध निर्माण के गोरखधंधे में पूरा सरकारी अमला सवालों के घेरे में है। अथॉरिटी, बैंक, पुलिस से लेकर यूपी पावर कॉर्पोरेशन तक सब पर सवाल उठ रहे हैं। हैरत की बात है कि बिल्डरों के अवैध निर्माण की सूचना दिए जाने के बाद भी प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। 

2 हफ्ते पहले ही पुलिस, CM योगी को बता दिया गया था 
इसी महीने की 2 तारीख को यूपी पुलिस और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ट्वीट कर बिसरख थाना क्षेत्र स्थित शाहबेरी में अवैध प्लॉटिंग और निर्माण की सूचना देकर कार्रवाई की मांग की गई थी। @smajsevak हैंडल से किए एक ट्वीट में आरोप लगाया गया था कि भूमाफिया थाना प्रभारी को मोटी रकम देकर अवैध तरीके से काम कर रहे हैं। डीजीपी यूपी और मेरठ जोन के एडीजी से अनुरोध किया गया था कि गरीब जनता को भूमाफियाओं से बचा लीजिए। इस ट्वीट पर यूपी पुलिस ने नोएडा पुलिस से प्रकरण की जांच कर आवश्यक कार्यवाही करने को कहा। नोएडा पुलिस ने इसका जवाब भी दिया पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बताया जा रहा है कि रजिस्ट्री ऑफिस से भी ऐसी सेटिंग थी कि बिना नक्शा पास कराए 20,000 रुपये रिश्वत देकर रजिस्ट्री करा दी जाती थी। बिल्डरों ने फ्लैट बेचने से पहले लोगों को सड़क, नाली, सीवर जैसी मूलभूत सुविधाओं का वादा किया था, जिसे भी पूरा नहीं किया गया। 

आपको बता दें कि शाहबेरी में जो बिल्डिंग्स बनी हुई हैं, ये ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी का वह क्षेत्र है जिसके भूमि अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में रद्द कर दिया था। इसी के साथ कोर्ट ने यहां किसी भी प्रकार के निर्माण पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद अथॉरिटी की नाक के नीचे यहां अवैध निर्माण का खेल जारी रहा। ना तो कभी अथॉरिटी ने और ना ही प्रशासन के अधिकारियों ने कभी गौर करना उचित समझा। यूपीपीसीएल के अधिकारियों ने भी मानकों को ताक पर रखते हुए अवैध इमारतों को बिजली कनेक्शन दे दिया। वहीं, बैंकों ने अवैध बिल्डिंग्स के लिए लोन भी जारी कर दिया। हादसे के बाद जब हमने अथॉरिटी के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने दबी जुबान में कहा कि जब भी वे यहां कार्रवाई के लिए आते थे तो अवैध निर्माण का जाल फैलाने वाले माफिया इकट्ठा हो जाते थे। उनका कहना है कि सख्ती की जाती थी तो यहां के स्थानीय नेता भी उनके समर्थन में उतर आते थे। 

समय के साथ खत्म होती जा रही उम्मीद 
बताया जा रहा है कि करीब 10-15 लोग मलबे में दबे हो सकते हैं जिसमें एक बिल्डिंग में हाल ही में शिफ्ट हुआ एक परिवार भी शामिल है।17 जुलाई को रात करीब 9.30 बजे शाहबेरी में दो इमारतें धराशायी हो गई थीं। बचाव अभियान लगातार जारी है। उधर, बचाव कार्य में लगी एनडीआरएफ की टीम ने आशंका जताई है कि मलबे में दबे लोगों के जीवित बचने की उम्मीद कम है। पुलिस के मुताबिक तीन आरोपियों बिल्डिंग के मालिक गंगा शरण द्विवेदी, ब्रोकर दिनेश और संजय को गिरफ्तार किया जा चुका है। इनके खिलाफ गैरइरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है। अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी के प्रयास किए जा रहे हैं। पुलिस ने अफवाह पर ध्यान ना देने की अपील की है। उधर, डीएम ने इस मामले में एडीएम कुमार विनीत को जांच सौंपी है, जो 15 दिनों में अपनी रिपोर्ट देंगे। 

बिल्डिंग गिरने की तीन प्रमुख वजहें 
इमारतें क्यों गिरीं? इस पर अधिकारी कुछ भी स्पष्ट नहीं बता पा रहे हैं। हालांकि हमारी पड़ताल में तीन संभावित कारण सामने आ रहे हैं: 

  • चक शाहबेरी के इस इलाके में अधिकतर बिल्डिंग बिना परमिशन और नक्शे के बन रही हैं। अथॉरिटी ने यहां पर सीवर लाइन की सुविधा भी नहीं दी है। ऐसे में अधिकतर बिल्डरों ने इमारतों के नीचे बेसमेंट बनवाकर सेप्टिक टैंक बनवा रखा है। इसे हर सप्ताह या 15 दिन में टैंकर मंगवाकर खाली करवा लिया जाता है। इस बिल्डिंग में भी सीवर कनेक्शन नहीं था और माना जा रहा है कि सेप्टिक टैंक से काम चलाया जा रहा था। हो सकता है कि टैंक कहीं से लीक हुआ और पानी दीवारों को कमजोर करने लगा। 
  •  बिल्डिंग के आसपास नाली का कोई इंतजाम नहीं है, जिससे वेस्ट वाटर बाहर जा सके। पिछले कुछ दिनों से हो रही बरसात से स्थिति और बिगड़ी और पानी बिल्डिंग की दीवारों को कमजोर करने लगा। रेतीली मिट्टी इसे झेल नहीं पाई और दीवार एक और झुक गई। 
  • बिल्डर ने घटिया सामान का इस्तेमाल किया, जिसके चलते दीवार झुकते ही बीम और पिलर वजन नहीं झेल पाए और इमारतें भरभराकर गिर गईं। 

अथॉरिटी ने कहा, रोकने की कोशिश हुई पर… 
ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के AGM केके शर्मा का कहना है कि 2011 में कोर्ट ने शाहबेरी गांव का अधिग्रहण रद्द कर दिया था। इसके बाद यहां अवैध निर्माण शुरू हो गए। उन्होंने कहा कि अथॉरिटी की ओर से अवैध निर्माण रोकने की कोशिश की गई पर हर बार टीम पर पथराव करके उन्हें भगा दिया जाता था। शर्मा ने बताया कि यहां नक्शा पास कराकर तीन मंजिला इमारतें बनाई जा सकती हैं लेकिन यहां लोग छह से आठ मंजिला इमारतें अवैध तरीके से बना रहे थे। 
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button