राफेल से बोफोर्स का बदला लेना चाहती है कांग्रेस, 2019 में बनाएगी मुख्य मुद्दा!

नई दिल्ली
साल 1987, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी मिस्टर क्लीन की छवि लेकर चल रहे थे. तभी बोफोर्स तोपों की खरीद में दलाली का मामला उछला, भ्रष्टाचार के इस मुद्दे पर विपक्षी एकता ने राजीव गांधी और उनकी सरकार पर ताबड़तोड़ हमले किये. साल 1989 आते आते बोफोर्स बड़ा चुनावी मुद्दा बना और राजीव सरकार हार गई.

अब तीस साल बाद कांग्रेस इसी हथियार से इतिहास को दोहराने की कोशिश में है. हां, फर्क यह है कि, इस बार राजीव गांधी के बेटे और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विपक्ष को साथ लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2019 में सत्ता से बाहर करने की रणनीति बना रहे हैं. वैसे इस बार भी सौदा रक्षा का ही है और वो है राफेल.

 राज्य सभा से कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया का मानना है कि बोफोर्स तो फर्जी मुद्दा बनाया गया था, जो कोर्ट ऑफ लॉ में खारिज हो गया. असली घोटाला तो राफेल है, जिसमें सब शीशे की तरह साफ है कि, कैसे कीमत बढ़ाई गई और कैसे एक उद्योगपति को फायदा दिया गया. राफेल डील 2019 चुनावों मे मुख्य मुद्दा होगा.

गौरतलब है कि पहले राहुल गांधी ने अपनी रैलियों में लगातार इस मुद्दे को उठाया, कांग्रेस ने बार बार प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मसले को बनाए रखा. फिर राहुल ने मोदी सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए पीएम की मौजूदगी में राफेल मुद्दे को सदन के पटल पर पूरी ताकत के साथ उठाया. मामला शांत न होने पाए इसलिए दो दिन बाद ही पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस करके राहुल के आरोपों को और आगे बढ़ाया.

इसके बाद पार्टी की एक बैठक में खुद राहुल ने अपने नेताओं से कहा कि, राज्यों में जिन मुद्दों पर आप मीडिया से मुखातिब होते हैं, होते रहें. लेकिन साथ ही राफेल जैसे बड़े राष्ट्रीय मसले पर भी सरल शब्दों में मीडिया को बताएं. इसके बाद कांग्रेस मीडिया विभाग और सोशल मीडिया विभाग ने इस मुद्दे को जन जन तक पहुंचाने के लिए अपनी रणनीति बनाई है.

इसके तहत राहुल के राफेल पर लगाये गये आरोपों वाले बयान की छोटी छोटी क्लिप बनाकर वायरल की गईं. आगे भी अलग अलग भाषाओं में इसके छोटे-छोटे पैम्फलेट बांटकर इसको कोने कोने में पहुंचाने की तैयारी है.  इस पूरी कवायद में इस बात का खास खयाल रखा जा रहा है कि, आसान भाषा जनता में भरोसा पैदा करने वाली और आकर्षक हो.

रणनीति के तहत, राहुल के आरोपों के तीन बिंदुओं को ख़ास तौर हाई लाइट किया जाना है:

1. यूपीए सरकार के दौरान जो लड़ाकू विमान 520 करोड़ का था, वो मोदी सरकार तीन गुना कीमत 1670 करोड़ रूपये में क्यों खरीद रही है?
2.यूपीए ने रख-रखाव और भविष्य में उत्पादन का जिम्मा सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को दिया, उसको मोदी सरकार ने एक प्राइवेट कंपनी को दिया, जिसके पास लड़ाकू क्या विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है.

3.देश की सुरक्षा से जुड़े रक्षा सौदे में घोटाला हुआ.

कांग्रेस को शायद याद है कि, बोफोर्स के वक़्त 64 करोड़ की दलाली का आंकड़ा विपक्ष ने बार-बार ऐसे ही उछाला जो सबकी जुबान पर चढ़ गया. कुछ इसी तर्ज पर कांग्रेस भी आंकड़ों को सरल और सीधे तरीके से चुनावी मुद्दा बनायेगी.

मुद्दा खत्म ना हो इसके लिए राहुल , बाकी नेता और कांग्रेस, विपक्ष को साथ लेकर आगे भी इस मुद्दे को नए-नए तरीके से उठाते रहेंगे. इसी रणनीति के तहत कांग्रेस लोकसभा में इस मुद्दे पर पीएम और रक्षा मंत्री पर गलतबयानी का आरोप लगाकर विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाने की तैयारी में हैं.  वहीं कभी यूपीए सरकार की धुरविरोधी रही आम आदमी पार्टी भी इस मुहिम में कांग्रेस के साथ खड़ी है, पार्टी के राज्य सभा सांसद संजय सिंह भी इस मुद्दे पर राज्य सभा में पीएम मोदी को घेर रहे हैं.

कुल मिलाकर 1989 में तो विपक्ष ने कांग्रेस के खिलाफ एक रक्षा सौदे को हथियार बनाकर उसे सियासी फर्श पर ला दिया था, ठीक वैसे ही अब कांग्रेस विपक्ष के साथ मिलकर एक रक्षा सौदे के जरिये सियासत के इतिहास को दोहराना चाहती है.

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