भारत की वो एजेंसी जिसका लोहा मानती है पूरी दुनिया, कई खतरनाक मिशन को दिया अंजाम

नई दिल्ली
दुनिया भर के करीब सभी देश अपनी आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए कड़े बंदोबस्त करते रहते हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत के पास भी बाहरी सुरक्षा पर नजर रखने के लिए एक एक खुफिया एजेंसी है, जिसका नाम रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ (R&AW) है। रॉ भारत की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसी है। इस एजेंसी का गठन रामेश्वर नाथ काव के मार्गदर्शन में किया गया था।

रॉ के गठन का क्या था मुख्य उद्देश्य?
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी है, जिसका गठन 21 सितंबर 1968 में किया गया था। साल 1968 तक इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के पास ही देश की आंतरिक और बाहरी खुफिया जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी थी। हालांकि, 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध आईबी ने जो जानकारी एकत्रित की थी उसमें एक बड़ा अंतर दिखा था। इस दौरान आईबी 1962 और 1965 के युद्धों में चीन और पाकिस्तान की तैयारी का अनुमान लगाने में विफल रही थी। हालांकि, तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार को बाहरी खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए एक समर्पित एजेंसी की आवश्यकता महसूस हुई, जिसके बाद ही R&AW का गठन किया गया।

सीधे पीएम को रिपोर्ट करता है इसका निर्देशक
रॉ का नेतृत्व एक निर्देशक करता है, जिसकी नियुक्ति केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय द्वारा की जाती है। इसके निर्देशक सीधे तौर पर देश के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। खुफिया एजेंसी रॉ में भारतीय सेना, पुलिस और अन्य सिविल सेवाओं सहित भारत सरकार की कई शाखाओं के अधिकारी कार्य करते हैं। इस एजेंसी को दुनिया की सबसे मशहूर खुफिया एजेंसियों की सूची में शामिल किया जाता है।  

विदेशी खुफिया जानकारी जुटाना एजेंसी का मुख्य काम
मालूम हो कि एजेंसी का प्राथमिक कार्य विदेशी खुफिया जानकारी जुटाना, आतंकवाद का मुकाबला करना, देश के खिलाफ विदेशी साजिशों का नाकाम करना, भारतीय नीति निर्माताओं को सलाह देना और भारत के विदेशी सामरिक हितों को आगे बढ़ाना है। इस एजेंसी को देश के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए गुप्त अभियान चलाना है। रॉ को भारत के परमाणु कार्यक्रम की सुरक्षा में भी शामिल किया गया है। खुफिया एजेंसी रॉ को पड़ोसी देश पाकिस्तान, चीन सहित आस-पास के पड़ोसी देशों से खुफिया जानकारी जुटाने में महारत हासिल है।

रॉ का इतिहास
    साल 1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में उस समय की खुफिया एजेंसी आईबी के निराशाजन के बाद रॉ को बनाया गया।
    रॉ का गठन 21 सितंबर 1968 को रामेश्वर नाथ काव के मार्गदर्शन में किया गया था।
    देश की इस प्रमुख खुफिया एजेंसी को जब गठन किया गया था, तब इसमें सिर्फ 250 कर्मचारियों को शामिल किया गया था और इसका बजट 20 मिलियन सालाना था।
    रॉ का वार्षिक बजट 70 के दशक में बढ़ाकर 300 मिलियन सालाना कर दिया गया। हालांकि, तब तक इसके कुल कर्मचारियों की संख्या हजार के आसा-पास पहुंच गई थी।
    कैबिनेट सचिवालय के तहत, संयुक्त खुफिया समिति (जेआईसी), खुफिया एजेंसी और रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआईए) के बीच खुफिया गतिविधियों को जोड़ने, मूल्यांकन करने और समीक्षा करने के लिए जिम्मेदार है।

सुरक्षा मजबूत करने की दिशा में निभाई है अहम भूमिका
मालूम हो कि रॉ ने विदेशों में कई महत्वपूर्ण ऑपरेशन, जासूसी मिशन और गुप्त संचार नेटवर्क चला चुका है। इसके माध्यम से रॉ ने RAW ने भारत के दुश्मनों की गतिविधियों की जानकारी इकट्ठा की है और आपातकालीन परिस्थितियों में अहम फैसलों के लिए निर्णय लिए हैं। इसने भारतीय सरकार को अपनी सुरक्षा को मजबूत करने के लिए नवीनतम जानकारी प्रदान की है।

बांग्लादेश के निर्माण में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका
रॉ ने बांग्लादेश को बनाने में अहम भूमिका निभा चुका है। इसने बांग्लादेशी संगठन मुक्ति बाहिनी को प्रशिक्षण, खुफिया और गोला-बारूद प्रदान करके समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के मूवमेंट को भी रॉ ने बाधित कर दिया था। और अंत में बांग्लादेश बना।

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