आर्थिक समंदर का टाइटैनिक न डूबे, केंद्र की चिंता

नई दिल्ली
केंद्र सरकार का कहना है कि वह इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशल सर्विसेज (IL&FS) के रूप में किसी कंपनी को नहीं, बल्कि आर्थिक सुमद्र के टाइटैनिक जहाज को बचा रही है, जिसके डूबने से अपार क्षति हो सकती है। सरकार ने कोर्ट को बताया कि उसे डर है कि अगर आईएलऐंडएफएस डूब गया तो फाइनैंशल मार्केट को बहुत बड़ा झटका लगेगा। यही वजह है कि वह इसकी रक्षा के लिए कदम बढ़ाने पर मजबूर हो गई। 
 
कंपनी मामलों के मंत्रालय की ओर से नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) में दायर 36 पन्नों की याचिका में आईएलऐंडएफएस को 'टाइटैनिक जहाज' बताते हुए कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स पर कुप्रबंधन का आरोप लगाया गया है। सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि आईएलऐंडएफएस को बचाना बहुत जरूरी है क्योंकि कंपनी पर कुल 910 अरब रुपये संचित ऋण (अक्यूम्युलेटेड डेट) का करीब दो-तिहाई हिस्सा सरकारी बैंकों के खाते में है। वहीं, देश के बैंकों का नॉन-बैंकिंग फाइनैंशल कंपनियों (एनबीएफसी) पर कर्ज का 16 प्रतिशत अकेले आईएलऐंडएफएस के पास है। 

इसमें कहा गया है, 'भविष्य में ग्रुप कंपनियों द्वारा भी कर्ज नहीं चुका पाने से (देश की) वित्तीय स्थिरता पर बहुत बुरा असर पड़ता।' सरकार ने कहा, 'इसकी (आईएलऐंडएफएस की) पूंजी जुटाने और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स को आगे बढ़ाने की क्षमता घटने से समूचे इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर, फाइनैंशल मार्केट्स और इकॉनमी के लिए बहुत नुसकानदायक साबित होगा।' 

गौरतलब है कि आईएलऐंडएफएस के शीर्ष शेयरधारकों में एलआईसी, एसबीआई, जापान की ऑरिक्स कॉर्प और अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी शामिल हैं। यह देश की उन हजारों विशाल नॉन-बैंकिंग फाइनैंशल कंपनियों में है जो पिछले कुछ सालों से बर्बादी की कगार पर आ खड़ी हई हैं। कंपनी जब कर्जों के ब्याज की किस्त नहीं चुकाकर अचानक खबरों में आ गई, तब सरकार ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया और अपनी ओर से नामांकित सदस्यों का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स बना दिया। साल 2009 में सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज पर नियंत्रण के बाद सरकार द्वारा किसी प्राइवेट कंपनी पर कब्जा करने की यह दूसरी घटना है। 

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