भीमा कोरेगांव हिंसा: नियमों को अनदेखा कर संभाजी भिडे को दी गई राहत!

मुंबई 
महाराष्ट्र सरकार ने दक्षिणपंथी नेता और कोरेगांव भीमा हिंसा मामले में मुख्य संदिग्ध संभाजी भिडे के खिलाफ कई केस नियमों को अनदेखा करके वापस लिए हैं। एक आरटीआई से खुलासा हुआ है कि भिडे की अगुवाई वाले संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को दंगे के मामले में नियमों का उल्लंघन करते हुए क्लीन चिट दी गई। 
 
दरअसल, किसी पर एफआईआर दर्ज होने पर केस सालों तक अदालत में चलता रहता है। सरकार इन केसों को वापस नहीं लेती, लेकिन आरटीआई से खुलासा हुआ है कि भिडे और कई राजनेताओं से जुड़े केस वापस लेने में महाराष्ट्र सरकार ने उदारता ही नहीं बरती, बल्कि कई अनियमियताएं भी कीं। आरटीआई कार्यकर्ता और अधिकार फाउंडेशन के अध्यक्ष शकील अहमद शेख का कहना है कि फौजदारी प्रक्रिया दंड संहिता की धारा 321 प्रावधानों के तहत राज्य सरकार को अधिकार है कि मामूली किस्म के अपराध में वह केस वापस ले सकती है। हालांकि केस वापस लेने के कुछ नियम हैं। 

कौन से केस वापस ले सकती है केस सरकार 
1. जिनमें किसी की जान न गई हो 
2. जिनमें पांच लाख रुपये से ज्यादा निजी और सरकारी संपत्ति का नुकसान न हुआ हो 
3. जिनमें आरोपी नुकसान की भरपाई करने के लिए सहमति पत्र दे 
4. जो केस 1 नवंबर, 2014 के पहले दर्ज हुए हों 

41 केस वापस, 32 में अनियमितता 
आरटीआई कार्यकर्ता शकील कहते हैं कि उन्हें गृह विभाग की सूचना और कक्ष अधिकारी प्रज्ञा घाटे ने जो जानकारी उपलब्ध कराई, उसके मुताबिक, 7 जून 2017 से 14 सितंबर 2018 तक फडणवीस सरकार ने 41 राजनीतिक केस वापस लिए। इनमें से 32 में अनियमितता पाई गई। इन 32 में तीन केस संभाजी भिडे और उनके राजनीतिक कार्यकर्ताओं से जुड़े हुए थे। मसलन, संभाजी भिडे और उसके साथियों के केस साल 2008 के हैं। इन केसों में पांच लाख रुपये से ज्यादा की संपत्ति का नुकसान हुआ, साथ ही आरोपियों ने संपत्ति के नुकसान की भरपाई का कोई सहमति पत्र भी नहीं दिया। 
 

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