एससी/एसटी आरक्षण: बड़े राज्‍यों ने चुप्‍पी साधी, 17 ठुकरा चुके हैं केंद्र का प्रस्‍ताव

 
नई दिल्‍ली

सुप्रीम कोर्ट ने 27 अगस्‍त को एससी/एसटी आरक्षण को लेकर अहम व्‍यवस्‍था दी थी। न केवल एससी/एसटी का उप वर्गीकरण  हो सकता है, बल्कि राज्‍य भी उसे कर सकते हैं। एक तरफ केंद्र सरकार जहां इस आदेश के बाद मामले की समीक्षा कर रही है, राज्‍यों की राय बेहद अहम हो जाती है। केंद्र सरकार ने दलितों के सब-डिविजन का जो प्रस्‍ताव भेजा था, उसे 17 राज्‍य साफ तौर पर खारिज कर चुके हैं। केवल पांच राज्‍यों ने हां की है। जून 2011 के बाद से ही, केंद्र सरकार राज्‍यों से बातचीत कर शीर्ष अदालत के 2004 में ईवी चिन्‍नैया मामले में दिए गए फैसले का तोड़ निकालने में जुटी है। उस फैसले में अदालत ने दलितों के सब-डिविजन को असंवैधानिक करार दिया था।

यूपी, बिहार, महाराष्‍ट्र ने नहीं दिया जवाब
यूपीए कैबिनेट में फैसले के बाद, 2011 में सामाजि‍क न्‍याय मंत्रालय ने मुद्दा राज्‍यों के सामने रखा था। सूत्रों के मुताबिक, यह कवायद अब भी जारी है क्‍योंकि 'देश की करीब आधी दलित आबादी जिन 6 बड़े राज्‍यों में रहती है, उन्‍होंने चुप्‍पी साध रखी है।' आखिरी बार दिसंबर 2019 में इन राज्‍यों को रिमाइंडर भेजा गया था। जवाब न देने वाले राज्‍यों में उत्‍तर प्रदेश, बिहार, महाराष्‍ट्र के अलावा जम्‍मू और कश्‍मीर तथा पुदुचेरी का नाम भी शामिल है। रोचक बात यह कि जिन पांच राज्‍यों ने केंद्र के प्रस्‍ताव पर हामी भरी है, वो वही हैं जो अपने यहां इसे लागू कर चुके थे।
 
कोटे पर 'कब्‍जा' खत्‍म करने की कोशिश
16 साल बाद, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने चिन्‍नैया केस में फैसले से अलग व्‍यवस्‍था दी है। सब-कैटेगराइजेशन का मतलब SCs को छोटे-छोटे समूहों में बांटना और फिर उनकी आबादी के आधार पर आरक्षण कोटा तय करना है। इसके पीछे उस शिकायत को दूर करने की कोशिश है कि कुछ प्रभावी उपजातियां ही कोटे का फायदा ले रही हैं। चिन्‍नैया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तब अविभाजित आंध्र प्रदेश की सब-कैटेगराइजेशन को असंवैधानिक करार दिया था। राज्‍य ने केंद्र पर दबाव बनाया तो यूपीए सरकार ने पूर्व जस्टिस ऊषा मेहता आयोग बना दिया।
 
सात जजों की बेंच समझेगी मामला
2008 में अपनी रिपोर्ट में कमिशन ने कहा कि वर्तमान नियमों के तहत सब-कैटेगराइजेशन की अनुमति नहीं है। मगर इसे अनुच्‍छेद 341 में बदलाव कर संसद को अधिकार दिए जा सकते हैं। 2011 में सरकार ने जो कवायद शुरू की, वह तो अटकी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जो आदेश दिया, उससे मुद्दा फिर चर्चा में है। सात जजों की एक बेंच पूरे मामले की पड़ताल करेगी। आदेश पर सिर्फ इसलिए नजर नहीं होगी कि उसे वर्तमान परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है या नहीं, बल्कि संवैधानिक संशोधनों के जरिए भी

कोटा के भीतर कोटा देने पर चर्चा हो सकती है। ऊषा मेहरा पैनल ने साफ कहा था कि संशोधन के जरिए इसकी व्‍यवस्‍था की जा सकती है। यह चिन्‍नैया केस के फैसले से बहुत अलग है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्‍यों को सब-कैटेगराइजेशन का अधिकार नहीं है।
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button