फेमस मूवी रिव्यू

कलाकार: जैकी श्रॉफ,केके मेनन,जिमी शेरगिल,माही गिल,श्रिया सरन,पंकज त्रिपाठी
निर्देशक: करण बुटानी
मूवी टाइप: Crime
अवधि: 1 घंटा 58 मिनट

ऐसा लगता है कभी 'साहब बीवी और गैंगस्टर' में एक अहम किरदार निभा चुके ऐक्टर करण बुटानी ने जब बतौर इंडस्ट्री में खुद को डायरेक्टर बनाने का ख्याल आया तो उन्होंने कुछ वैसे ही स्टाइल की फिल्म बनाने का प्लान बनाया, करीब 2 घंटे की इस फिल्म को देखने के बाद तो यही लगता है स्टार्ट टू ऐंड चंबल के बीहडों और यहां की अलग अलग आउटडोर लोकशंस पर अपनी इस मूवी को शूट करने वाले ऐक्टर, राइटर, असिस्टेंट डायरेक्टर करण के दिलोदिमाग पर अनुराग कश्यप की 'गैंग्स आफ वासेपुर' और तिग्मांशु धूलिया के निर्देशन में बनी 'साहिब बीवी और गैंगस्टर' को कुछ इस तरह छाई हुई थी कि बतौर डायरेक्टर अपनी पहली फिल्म को वैसा बनाने के चक्कर में पूरी तरह से चूक गए।

कहानी: चंबल के एक गांव में शादी समारोह चल रहा है, यहीं पर गांव का दंबग शंभू (जैकी श्रॉफ), कड़क सिंह (केके मेनन) पर गोली चलाता है क्योंकि कड़क सिंह शादी के मंडप से दुल्हन को उठाकर ले जाना चाहता है। शंभू, कड़क सिंह पर गोली चलाता है लेकिन गोली दुल्हन को लगती है और वह वहीं दम तोड़ देती है, शंभु जेल की सलाखों के पीछे पहुंच जाता है। अब कड़क सिंह गिरोह का हेड बन जाता है और गांव के अय्याश, भ्रष्ट विधायक राम विजय त्रिपाठी (पंकज त्रिपाठी) को लड़कियां पहुंचाने का काम करने लगता है। इसी बीच एक दिन त्रिपाठी की नजर स्कूल टीचर रोजी (माही गिल) पर पड़ती है। त्रिपाठी रोजी के साथ जबर्दस्ती करने की कोशिश करता है लेकिन रोजी उसका विरोध करती है। इसी बीच त्रिपाठी रोजी की गोली मार कर हत्या करके जेल पहुंच जाता है।

इसी कहानी का अगला किरदार राधे (जिमी शेरगिल) है जो स्कूल में रोजी का स्टूडेंट है और मन ही मन टीचर को चाहता है। वक्त गुजरता है, कुछ साल बाद राधे की शादी लल्ली (श्रिया सरन) से होती है और उधर राम सेवक त्रिपाठी जेल से छूट कर बाहर आ चुका है और अब वह क्षेत्र का विधायक नहीं बल्कि सांसद है। एक दिन त्रिपाठी गांव में राधे की खूबसूरत वाइफ लल्ली को देखता है और किसी भी सूरत में लल्ली को हासिल करना चाहता है। त्रिपाठी एकबार फिर कड़क सिंह पर अपना दबाव बनाकर लल्ली के साथ शारीरिक संबध बनाना चाहता है। कड़क सिंह ना चाहते हुए भी त्रिपाठी की इस काम में इसलिए मदद करता है कि उसके गैरकानूनी काम त्रिपाठी की कृपा से ही चलते है। इसके आगे क्या होता है अगर यह भी जानना चाहते है तो फिल्म देखें।

ऐक्टिंग–डायरेक्शन: शुरू के करीब 10 मिनट की फिल्म देखकर लगता है कि हमें एक दमदार स्क्रिप्ट के साथ लीक से हटकर एक अच्छी फिल्म देखने को मिलेगी, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे खिसकती है वैसे-वैसे लगने लगता है कि डायरेक्टर अपने ट्रैक से भटक रहा है। वजह यह है कि फिल्म की कहानी काफी पुरानी और हल्की है ऐसे में कहानी का ट्रीटमेंट बेहद कमजोर है। ताज्जुब होता है इंडस्ट्री के नामचीन मंझे हुए स्टार्स को लेकर डायरेक्टर ने एक कमजोर फिल्म बनाई। कमजोर स्क्रिप्ट और डायरेक्शन के अलावा अगर हम फिल्म की एडिटिंग की बात करे तो यहां फिल्म बेहद लचर नजर आती है। रीयल लोकेशंन पर कैमरामैन ने कुछ सीन्स को बेहतरीन ढंग से कैमरे में कैद किया है, लेकिन कहानी के किरदारों को कुछ ऐसे रचा गया है कि दर्शक इन किरदारों के बारे में ही पूरी तरह से जान नहीं पाते। फिल्म में माही गिल को क्यों लिया गया यह समझ से परे है। माही गिल की इमेज बोल्ड ऐक्ट्रेस की है लेकिन यहां फिल्म में उनके हिस्से में चंद सीन आए और इनमें भी स्कूल टीचर बनी माही साड़ी में नजर आती है। इस फिल्म की इकलौती यूएसपी पंकज त्रिपाठी की जबर्दस्त ऐक्टिंग है जबकि केके मेनन, जिमी शेरगिल, श्रिया सरन ने अपने किरदारों को बस निभा भर दिया। जैकी श्रॉफ के करने के लिए फिल्म में कुछ था ही नहीं ।

क्यों देखें: इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं कि हम आपसे इस फिल्म को देखने के लिए कहें। हां, अगर पकंज त्रिपाठी के पक्के फैन है तभी इस फिल्म को देखने जाएं।

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