मानव तस्करों की जद में छत्तीसगढ़, 30 हजार बेटियां हुई शिकार

रायपुर
केंद्र और राज्य सरकार मानव तस्करी को रोकने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर योजना बनाती है, इसके साथ ही मानव तस्करी ना हो इसके लिए लगातार प्रयास भी किए जाते हैं, लेकिन जो लोग तस्करी के शिकार हुए है, उनकी जानकारी सरकार के पास होने के बाद भी उन्हें खोजने और वापस लाने की मशक्कत नहीं कि जा रही है, जितनी दस्तावेजों में कार्य योजना बनाने में रकम खर्च की जा रही है.

मानव तस्करी को लेकर विधान के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 30 हजार बेटियां इस अपराध की शिकार हुई है. प्रदेश के जशपुर, रायगढ़ जांजगीर में तस्करी की घटनाएं सबसे अधिक हुई है. मानव तस्करी को गरीब और अज्ञानता ने भी अहम भूमिका अदा की है. उससे भी कहीं अधिक शर्मनाक यह है कि शासकिय तंत्र ही इस अपराध को रोकने में पूरी तरह असफल रहा है. लापता बेटियों को लेकर विधानसभा से लेकर सड़कों तक लड़ाई चली मगर हजारों बेटियां अब तक वापस नहीं आ सकी है.

बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रभा दुबे का कहना है कि पूरे प्रदेश में बेटियों को लेकर बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं का अभियान चलाया जा रहा है, मगर बेटिया कहां है और किन परिस्थितियों में है इस दिशा में कोई कार्य नहीं कर रहा है. मानव तस्करी के जरिए जो बेटियां लापता हुई है या इस अपराध का शिकार हुई है वो आज तक वापस नहीं लौट सकी है.

बाल आयोग के राष्ट्रीय सदस्य यशवंत जैन ने कहा कि राज्य से राष्ट्रीय स्तर तक रायगढ़ और जशपुर को महज इस लिए जाना जाता है कि यहां मानव तस्करी की घटनाएं होती रही है. उन्होंने कहा कि बीते कुछ सालों में मानव तस्करी के आंकड़ों में गिरावट जरूर आई है, लेकिन मानव तस्करी पर अंकुश नहीं लग सका है.

मानव तस्करी के अपराध में पूरे प्रदेश में से रायगढ़ जिला ही एक ऐसा जिला है जहां 4 मानव तस्करों को अब तक सजा हो सकी है. जशपुर में सबसे अधिक मानव तस्करी की घटनाएं घटित हुए है, जांजगीर सहित कई जिले भी इस अपराध से अछूते नहीं है, मगर ना तो गायब बेटियों का कोई सुराग लगा है और ना ही मानव तस्करों को सजा मिल सकी. चंद रुपयों के लिए बेटियों को बेचा जा रहा है, लेकिन हर बार आरोपी चंगुल से बच निकलते हैं.

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