बाघों की दहाड़ से पूरी दुनिया में मिली पहचान, काले सोने का भी है भंडार, जस्व का ये प्रमुख केन्द्र

उमरिया
कभी रीवा रियासत की दक्षिणी राजधानी रहा मध्य प्रदेश का उमरिया सन 1998 के पहले तक शहडोल जिले का एक अंग रहा है. इसके बाद शहडोल से अलग कर उमरिया को जिला बनाया गया. चारों तरफ जंगल पहाड़ों से घिरे खूबसूरत वादियों के इस जिले की दुनियाभर में पहचान बांधवगढ़ की वजह से है, जिसे बाघों का राज्य कहा जाता है और यही वजह है कि आसानी से बाघ दर्शन के लिए यंहा हर साल बड़ी तादात में देशी विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं. कभी चीनी मिट्टी के बर्तनों के लिए मशहूर रहे जिले में खनिज संपदा के अकूत भंडार है और यंहा प्रचुर मात्रा में काला सोना यानी कि कोयला पाया जाता है.

यह अलग बात है कि आधुनिकता की चकाचौंध में यहां का चीनी मिट्टी का कारखाना बंद हो चुका है, लेकिन यंहा की कोयला खानों से निकाला गया कोयला आज भी देश के ऊर्जा जरूरत को पूरा करने में अहम रोल अदा करता है. जिले में एसईसीएल की आठ कोयला खदानें संचालित हैं.

जिले के बिरसिंहपुर में संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र के नाम से प्रदेश का सबसे बड़ा ताप विद्युत गृह स्थापित है, जंहा 1350 मेगावाट बिजली का उत्पादन प्रदेश के बिजली उत्पादन में अहम हिस्सेदारी निभाता है. जिले के कुल क्षेत्रफल का 42 फीसदी हिस्सा वनाच्छादित है. लिहाजा वन संपदा से भरपूर इस जिले में पर्याप्त मात्रा में वनोपज और औषधीय जड़ी बूटियां पाई जाती हैं, जिससे आर्युवेदिक उत्पादको की जरूरत पूरी होती है.

जानकारों के मुताबिक एक छोटी सी उमरार नामक नदी के नाम से बसे उमरिया जिले में बांधवगढ़ के अलावा बिरसिंहपुर पाली का कलचुरी कालीन मां बिरासनी देवी का मंदिर देवी शक्ति पीठों में से एक है, जंहा नवरात्र की नवमी को निकलने वाला जवारा जुलूस काफी प्रसिद्ध है. इसके अलावा आसपास के इलाकों को पर्यटकों को लुभाने के लिए विकसित भी किया गया है.

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