डाकुओं के लिए पहचाना जाने वाला चंबल अब बना शोध और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र

इटावा
यूं तो चंबल की पहचान डाकुओ की पनहगाह के तौर पर पूरी दुनिया मे होती आई है लेकिन इसकी एक पहचान आजादी के आंदोलन की लंबी और निर्णायक लड़ाई लडे जाने को लेकर भी होती है । अब आजादी के आंदोलन के यही दस्तावेज चंबल के मिजाज को नई पहचान दिलाते हुए नजर आ रहे है क्योंकि इन्ही दस्तावेजो ने चंबल की ओर दुनिया भर के शोधार्थियो को आकर्षित किया है । शाह आलम चंबल संग्राहलय को बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। संग्रहालय की कल्पना उन्हीं की उपज है। शाह आलम ने अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद और जामिया सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली से पढ़ाई की । डेढ़ दशक से घुमंतू पत्रकारिता का देश-दुनिया में चर्चित नाम रहें हैं । भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के जानकार हैं।

2006 में अवाम का सिनेमा की नींव रखी और देश में 17 केन्द्र हैं, जहां कला के विभिन्न माध्यमों को समेटे एक दिन से लेकर हफ्ते भर तक आयोजन अक्सर चलते रहते हैं। अवाम का सिनेमा के जरिए वे नई पीढ़ी को क्रांतिकारियों की विरासत के बारे में बताते हैं । शाह आलम का नाम 2700 किमी से अधिक दूरी साइकिल से तय करके मातृवेदी के गहन शोध के लिए जाना जाता है। अभी हाल में चंबल जन संसद और आजादी के 70 साल पूरे होने पर आजादी की डगर पे पांव 2338 किमी की उनकी यात्रा काफी सुर्खियों में रही। दर्जनों दस्तावेजी फिल्मों का निर्माण करने वाले शाह की इसी साल मातृवेदी-बागियों की अमरगाथा पुस्तक प्रकाशित प्रकाशित हुई है।

शाह बताते है कि चंबल का ज़िक्र होता है तो डकैतों की तस्वीर ज़ेहन में उमड़ती है। चंबल के प्रति ये नकारात्मकता भी लाता है, लेकिन चंबल हमेशा डकैतों के लिए क्यों जाना जाए, इसी सवाल को लेकर चंबल संग्रहालय की नींव रखी गई है । उन्होंने देश के सबसे बड़े गुप्त क्रांतिकारी दल मातृवेदी के शताब्दी वर्ष के दौरान करीब 2700 किलोमीटर की चंबल संवाद यात्रा साइकिल से की थी। इसी शोध यात्रा के दौरान ज़ेहन में चंबल संग्रहालय का ख्वाब बुना गया था। फिर मार्च, 2018 में चंबल संग्रहालय की यात्रा आरंभ हुई। उनका कहना है कि चंबल संग्रहालय में अब तक करीब 14 हजार पुस्तकें, सैकड़ो दुर्लभ दस्तावेज, विभिन्न रियासतों के डाक टिकट, विदेशों के डाक टिकट, राजा भोज के दौर से लेकर सैकड़ो प्राचीन सिक्के, सैकड़ों दस्तावेजी फिल्में आदि उपलब्ध हो चुके हैं । संग्रहालय में आठ कांड रामायण से लेकर रानी एलिजाबेथ के दरबारी कवि की 1862 में प्रकाशित वह किताब भी मौजूद है, जिसके हर पन्ने पर सोना है।

यहां दुर्लभ और दुनिया के सबसे पुराने स्टांप, डाक टिकट भी होंगे। इसके साथ ही यहां ब्रिटिश काल से लेकर दुनिया भर के करीब चालीस हजार डाक टिकट मौजूद हैं। इसके अलावा संग्रहालय में करीब तीन हजार प्राचीन सिक्कों का कलेक्शन भी किया जा चुका है। चंबल संग्राहलय को सहयोग और शोध के लिए विदेशों से भी लोग संपर्क कर रहे हैं । यह वाकई सुखद है कि जहां सिर्फ बदहाली और डकैतों के खौफनाक किस्से हैं, उस हिस्से में संग्राहलय बन चुका है। उनका कहना है कि संग्रहालय को बेतहर बनाने के लिए और भी शोध सामग्री तलाश की जा रही है। संग्रहालय समाज में बिखरे अमूल्य ज्ञान स्रोत सामग्री सहेजने के मिशन में जुटा है, जहां से भी बौद्धिक संपदा मिलने की रोशनी दिखती है, संग्रहालय उन सुधी जनों से संपर्क कर रहा है।

दुर्लभ दस्तावेज, लेटर, गजेटियर, हाथ से लिखा कोई पुर्जा, डाक टिकट, सिक्के, स्मृति चिन्ह, समाचार पत्र, पत्रिका, पुस्तकें, तस्वीरें, पुरस्कार, सामग्री-निशानी, अभिनंदन ग्रंथ, पांडुलिपि आदि के गिफ्ट करने के लिए हर दिन हमख्याल लोगों के दर्जनों फोन आ रहें है। इस ज्ञानकोष से चंबल संग्रहालय समृद्ध और गौरवांवित होगा। शाह बताते है कि पहले चरण में सन्दर्भ सामग्री के संरक्षण के लिए डिजिटाइजेशन, लेमिनेशन आदि पर बीते तीन महीने से शिद्दत से काम चल रहा है। दुर्लभ वस्तुओं की सहेजने वाले किशन पोरवाल की पांच दशकों की कड़ी मेहनत और दस्तावेजी फिल्म निर्माता शाह आलम की दो दशकों की सामग्री से यह यात्रा शुरु हुई है। चंद ही दिनों में इस पहल से आज तमाम लोग खुले दिल से जुड़ रहें हैं।

उन्होने कहा कि कि चंबल संग्रहालय में आठ कांड की रामायण, जिसमें लव कुश कांड भी है। प्राचीन गीता, संस्कृत और उर्दू में साथ-साथ लिखी दुर्लभ मनुस्मृति तो है ही, रानी एलिजावेथ के दरबारी कवि की 1862 में प्रकाशित वह किताब जिसके हर पन्ने पर सोना है, भी यहां मौजूद है। वर्ष 1913 में छपी ए.ओ. ह्यूम की डायरी। प्रभा पत्रिका के सभी अंक। चांद का जब्तशुदा फांसी अंक और झंडा अंक, गणेश शंकर विद्यार्थी जी द्बारा अनुदित बलिदान और आयरलैण्ड का इतिहास पुस्तक, जिस पढ़कर नौजवान क्रांतिकारी बनने का ककहरा सीखते थे की मूल प्रति। तमाम गजेटियर, क्रांतिकारियों के मुकदमें से जुड़ी फाइलों के इलावा देश और विदेश की 18वी और 19वी शताब्दी के हर मुद्दों की दुर्लभ किताबों का जखीरा मौजूद है ।

उनका कहना है कि सरस्वती, माधुरी, विश्वमित्र, चांद, प्रभा, सुधा, विश्व मित्र, सुकवि, कन्या मनोरंजन, नवजीवन विशाल भारत, हंस, सारिका, धर्मयुग, दिनमान, साप्ताहिक हिन्दुस्तान आदि सहित देश-विदेश की सात हजार दुर्लभ पत्रिकाएं के इलावा प्रमूख साहित्यकारों की दुर्लभ कृतियां आकर्षित कर रही हैं। आजादी आंदोलन के दौरान के साहित्य का जखीरा मौजूद है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि सैड़को प्रत्रिकाओं के प्रवेशांक भी मौजूद है। आजादी के पहले के कुछ मैगजीनों के भेजे गए टिकट लगे लिफाफे भी संरक्षित किए गए हैं

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