बिहार: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने प्रस्ताव रख वाम दलों ने दिया समर्थन

पटना
नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार को कई मानकों पर पिछड़ा बताने के बाद विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग नए सिरे से शुरू हो गई है। जदयू, राजद, कांग्रेस, हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा जैसे राजनीतिक दल इसके पक्ष में अपनी राय दे चुके हैं। वाम दलों ने विशेष राज्य के मुद्दे का न सिर्फ समर्थन किया है, बल्कि सिर्फ इसी एक सवाल पर बड़ा आंदोलन करने का प्रस्ताव दिया है। वाम दलों की शर्त यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपना रुख साफ करें। मामला केंद्र सरकार के पाले में है। यह संभव नहीं है कि मुख्यमंत्री केंद्र सरकार से दोस्ती कायम रखें और विशेष राज्य की मांग भी करें। भाकपा के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय ने कहा कि उनकी पार्टी 2005 से ही विशेष दर्जा देने की मांग कर रही है। पार्टी की स्पष्ट समझ है कि बिना विशेष दर्जा के राज्य का विकास नहीं हो सकता है। अब तो नीति आयोग भी मान रहा है कि बिहार पिछड़ेपन के मानकों में निचले स्तर पर है। इसके बाद विशेष दर्जे से इनकार का केंद्र के पास कोई आधार नहीं है। उन्होंने कहा-सभी राजनीतिक दलों का अपना-अपना एजेंडा होता है। अगर सिर्फ एक मुद्दा-विशेष राज्य पर कोई आंदोलन होता है तो दलीय मतभेद के बावजूद भाकपा किसी अन्य दल के साथ उस आन्दोलन में शामिल होगी। 

गंभीर हैं तो भाजपा से नाता तोड़ें
माकपा के राज्य सचिव अवधेश कुमार ने कहा-हमें ऐसा नहीं लगता है कि नीतीश कुमार विशेष राज्य के मुद्दे को लेकर गंभीर हैं। उन्हें जब कभी राजनीतिक झटका लगता है तो विशेष राज्य का शिगूफा छोड़ देते हैं। हां, राज्य के विकास के लिए विशेष दर्जा जरूरी है। हम राजद, वाम दलों और समान विचारधारा की अन्य पार्टियों से विचार-विमर्श कर तय करेंगे कि आन्दोलन का क्या स्वरूप हो। नीतीश चाहें तो भाजपा से नाता तोड़ कर आन्दोलन में शामिल हो सकते हैं। वे ऐसा करेंगे, इसमें संदेह है।

यह बिहार की उपेक्षा का सवाल है
भाकपा माले के पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेंद्र झा ने कहा कि नीति आयोग की रिपोर्ट आने के बाद इस सवाल पर बड़े आन्दोलन की संभावना बन रही है। निश्चित रूप ने वाम दल और महागठबंधन के अन्य दल मिल कर आन्दोलन चलाएंगे। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार अगर विशेष राज्य को लेकर गंभीर हैं तो उन्हें सत्ता की कुर्बानी देनी होगी। क्योंकि राज्य की उपेक्षा आम लोगों का मुद्दा है। इस मुद्दे पर नीतीश कुमार वोट भी ले चुके हैं। भाकपा माले तो बिहार विभाजन के अगले साल 2001 में ही नई दिल्ली में प्रदर्शन कर चुका है। पार्टी ने कभी इसे मुद्दे को नहीं छोड़ा।
 

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