10 महीने से शंघाई में अटके डॉग की परिवार तक पहुंचने की गजब कहानी

पुणे  
ये कहानी है लिओ की जो दस महीने तक अपने परिवार से बिछड़ा रहा. दूरी भी हजारों किलोमीटर की थी. हालात ऐसे थे कि परिवार चाह कर भी लिओ को अपने पास नहीं ला पा रहा था. फिर कैसे गोल्डन रिट्रीवर डॉग लिओ का अपने परिवार से हुआ मिलन, ये सारा माजरा बहुत ही दिलचस्प है.   

पुणे में मानस सिन्हा रहते हैं. उनके परिवार में पत्नी रितु सिन्हा और नन्ही बेटी सानवी है. कोरोना महामारी की दुनिया में दस्तक से पहले तक सिन्हा परिवार चीन के शंघाई में रहता था. मानस वहां मल्टीनेशनल कम्पनी में वरिष्ठ अधिकारी थे. एनिमल लवर्स होने की वजह से सिन्हा परिवार ने शंघाई में सोशल मीडिया पर डॉग को अडॉप्ट (गोद लेने) के लिए एप्लीकेशन डाल रखी थी. एक दिन रितु को एक एनिमल रेस्कुअर का मैसेज आया. उसमें लिखा था कि डॉग सेंटर पर एक गोल्डन रिट्रीवर डॉग है, अगर उसे जल्दी अडॉप्ट नहीं किया गया तो उसे अन्य बेसहारा कुत्तों की तरह मार दिया जाएगा. 

ये मैसेज पढ़ते ही सिन्हा परिवार ने जरा भी देर नहीं की और तुरंत डॉग सेंटर पहुंच गए. पहली नजर में ही उन्हें डॉग भा गया और नाम रखा लिओ. रितु ने अडॉप्टेशन प्रोसेस पूरा किया और लिओ को घर ले आए. रितु के मुताबिक जब उन्होंने पहली बार लिओ को देखा था तो वो बहुत कमजोर था. ऐसा लगता था कि वो किसी सदमे का शिकार है. ज्यादा हलचल भी नहीं करता था, दिया खाना चुपचाप खा लेता था. 

सिन्हा परिवार से लिओ को लाड-दुलार मिला तो जल्दी ही उसकी सेहत पर भी असर नजर आने लगा. धीरे-धीरे लिओ भी सामान्य बर्ताव करने लगा. बिटिया सानवी से तो उसका बहुत लगाव हो गया. सानवी जैसे ही स्कूल से घर लौटती, लिओ बहुत खुश होता. जब तक वो उसके साथ खेल नहीं लेता, चैन से नहीं बैठता. सानवी को भी लिओ का साथ बहुत अच्छा लगता था. 

सब कुछ हंसी-खुशी बीत रहा था कि पिछले साल के आखिर में चीन के वुहान शहर में सबसे पहले कोरोना वायरस के मरीज पाए जाने की ख़बर मिली. हालांकि शंघाई में तब उसका कोई असर नहीं था लेकिन ऐसे में सिन्हा परिवार भी सतर्क हो गया. तब तक शंघाई में भी सोशल डिस्टेसिंग के नियमों का पालन किए जाने लगा. जनवरी में सिन्हा परिवार 10 दिन की छुट्टी लेकर शंघाई से पुणे आ गया. सिन्हा परिवार रिटर्न टिकट लेकर आया था, इसलिए लिओ को शंघाई में डॉग शेल्टर होम में केयर टेकर के पास छोड़ आया.  
 
फिर चीन में कोरोना वायरस से हालात ज्यादा खराब होने लगे. ऐसे में सिन्हा परिवार शंघाई लौटने की तारीख को आगे बढ़ाता रहा. फिर एक दिन ऐसा आया कि सिन्हा परिवार ने फैसला किया कि अब शंघाई नहीं लौटेंगे और पुणे में ही रहेंगे. लेकिन परिवार को लिओ की फिक्र सताई जा रही थी. वो डॉग शेल्टर होम में लिओ की अच्छी तरह देखभाल के लिए 75,000 रुपए हर महीने खर्च कर रहे थे. दिन बीतते जा रहे थे, अब सिन्हा परिवार के सामने सवाल था कि लिओ को शंघाई में ही किसी की कस्टडी में हमेशा के लिए दे दिया जाए या उसे पुणे लाया जाए. इस पर पूरे परिवार की राय थी किसी भी तरह लिओ को शंघाई से लाया जाए. 

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